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अणुव्रत-दृष्टि मिलावटका अर्थ, अस्वाभाविकतया एक पदार्थमें विजातीय पदाथको मिला देना।
६-क्रय-विक्रयमें कूट तोल-माप न करना ।
मेगस्थनीजके कथनानुसार भारतवर्ष में एक दिन वह था जब, सोने चांदी और जवाहिरातकी दूकानोंपर भी ताले नहीं लगाये जाते थे, एक आज जब कि दूकानदार स्वयं ही आनेवाले ग्राहककी हजामत बना देने के लिये प्रस्तुत रहते हैं। एक दिन जब कि बिना हककी एक पाई भी लेना अधर्म माना जाता था, आज सामनेवाले व्यक्तिका यदि सर्वस्व ही नष्ट होता हो उन्हें कोई चिन्ता नहीं, उनका स्वार्थ सिद्ध होना चाहिए । बहुतसे लोगोंका ऐसा विश्वास ही बन चुका है कि एक दम सच्चा तोल-माप रखनेवाला अन्य व्यापारियोंकी प्रतियोगितामें ठहर ही नहीं सकता। यह केवल भ्रांति है ।जोब्यक्ति सच्चाईके आधारपर व्यापार करता है उसे कुछ दिनोंके लिये सफलता न मिले, वह बात दूसरी है किन्तु बहुधा अन्ततः उसको सच्चाई चमकती है और वह सबसे अधिक लाभ उठा लेता है। झूठा तोल-माप करना अपने आप व्यवसाय नष्ट करना है। धोखा खानेवाले भी बार-बार नहीं खाते। जिस ग्राहकने जिस दूकानदारसे एक बार धोखा खाया वह तो उससे सदाके लिये चला ही जाता है। सारांश यह हुआ कि सच्चाईका व्यापार प्रारम्भमें मन्द और क्रमशः मजबूत होता जाता है। झूठ और कपट पर आधारित व्यापार अपने प्रथम क्षणसे ही क्रमशः मन्द होता जाता है और बहत शीघ्र अस्त भी हो सकता है। अस्तु भौतिक क्षति तो फिर भी संभावित है किन्तु आत्मपतन तो अवश्यम्भावी है। मिलावट व कूड़ तोल मापसे भारतवर्ष दूसरे राष्ट्रोंमें भी अभी भी पूरी अप्रतिष्ठा कमा रहा है । ऐसे व्यापारी अपना आत्म पतन करनेके साथ-साथ देशके साथ भी बहुत बड़ी गद्दारी करते हैं, इन कारनामोंसे न उनका और न देशका भला होनेका है।
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