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अणुव्रत - दृष्टि
अणुव्रती अपने प्रतिपक्षीको भी अवैध उपायोंसे गिरानेका प्रयत्न नहीं करेगा और न तत्प्रकारके अवैध व अनैतिक प्रकारसे उससे आगे आनेके लिये प्रस्तुत होगा ।
--व्यक्तिगत स्वार्थ या द्व ेषवश किसीका मर्म (गुप्तबात ) प्रकाश
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न करना ।
किसी व्यक्तिके मर्म या रहस्यको प्रकट करना एक महान् हिंसा है, समय-समय पर इससे बड़े अनर्थ भी हो जाया करते हैं । कभी-कभी सामूहिक स्वार्थवश किसी रहस्य व मर्मको प्रकट किये बिना रहना भी समाजस्थ व्यक्तिके लिये दुस्साध्य हो जाया करता है, इसलिये नियममें व्यक्तिगत स्वार्थ और द्व ेषवश ये दो प्रयोजन जोड़ दिये गये हैं । स्थितियोंका विवेक अणुव्रती स्वयं करे, विचारे, जो रहस्य मैं प्रकट करने जा रहा हूं उसमें अन्तरात्मामें छिपा द्वेष या व्यक्तिगत स्वार्थ ही तो कारण नहीं है।
१० - किसीको मित्रभाव दिखाकर अनिष्टकारी सलाह न देना । मित्रभाव दिखलाकर किसीको अनिष्टकारी सलाह दे देना घोर विश्वासघात है । प्रथम अणुव्रतके नियम नं० ८ में ही इसकी वर्जना हो जाती है तथापि स्पष्टताके लिये व व्यापक बुराईकी ओर सीधा ध्यान खींचनेके लिये यह स्वतन्त्र नियम होना आवश्यक था ।
अणुव्रतीका उचित आदर्श तो यह है कि उसका परम शत्रु भी उससे सलाह लेनेके लिये आये और सच्ची सलाह देनेसे अपना ही अहित होता हो तो भी अणुव्रती उसे असत्य व अनिष्टकारी सलाह न दे ।
११ – धरोहर या बन्धक ( रेहन ) वस्तुसे इन्कार न होना । धरोहर - किसी अन्य व्यक्तिकी वस्तु जो उसके आग्रहपर सुरक्षाके बंधक - जो जमीन, मकान, गहना, अस्थाई रूपसे किसी व्यक्तिके हस्तगत कर दिये जाते हैं, इस शर्तपर कि जब रुपये वापस करूंगा अपनी वस्तु
लिये अपने पास रखली जाती है। सोना, चान्दी, रुपये आदि लेकर
ले लूंगा ।
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