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सत्य-अणुव्रत वासना तक न होनी चाहिए। वह तो इस बातके लिये सचेष्ट रहे कि इस विषयमें मैं सूक्ष्म असत्यसे भी बचता रहं। ..
कुछ लोग कहा करते हैं कि अपनी ही लड़की में कोई ऐब या बडी बीमारी हो, उसका यदि हम उल्लेख कर दें तो या तो उसका सम्बन्ध होता ही नहीं यदि होता है तो अच्छे घरमें नहीं होता। वे यह नहीं सोचते हम अपने और अपनी लड़की के स्वार्थकी चिन्ता करते हैं । बेचारे उस व्यक्तिकी क्या दशा होगी जो हमारे विश्वास पर उस लड़की से शादी कर लेगा। क्या वह जन्म भर रोता नहीं रहेगा, क्या वह नहीं मानेगा, अणुव्रती ने मेरे साथ भयङ्कर विश्वास-घात किया । अस्तु अणुव्रतीके लिये अपना आदर्श मुख्य है अन्य बातें गौण । __ छोटी उम्रके लड़के लड़कियोंको बड़ी उम्रके और बड़ी उम्रके लड़के लड़कियोंको छोटी उम्रका बता देनेसे भी अणुव्रतियोंको यथासम्भव बचना चाहिए।
७-असत्य मामला न करना और न करनेकी सम्मति देना ।
सत्य बातके लिये भी अणुव्रतीको न्यायालयतक पहुंचनेसे यथा सम्भव बचना चाहिए। असत्य मामला सजाने व सजवानेकी तो सोचनी ही नहीं चाहिए।
८-मिथ्या आरोप या कलंक न लगाना। . विद्वेष और ईर्ष्या ही मुख्यतः मिथ्या आरोप या कलंक लगानेके कारण बनते हैं। कलंक या आरोप भी बहुत प्रकारसे लगाये जाते हैं। बधा प्रतिपक्षी जिस क्षेत्रमें प्रतिष्ठा पानेवाला होता है वैसे ही आरोप गढ़ लिये जाते हैं। यदि वह राज कर्मचारी है तो उसे गिरानेके लिये वह घूस लेता है' अन्याय करता है ; यदि वह समाजिक क्षेत्रमें प्रतिष्ठाप्राप्त है तो वह व्यभिचारी है, शराब पीता है ; यदि वह व्यापारी है तो वह घाटेमें है, उसका दिवाला निकलनेवाला है, कर्जदार है; यदि वह सार्वजनिक कर्ता है तो परोपकारका ढोंग है, पैसे ठगनेका रास्ता है, अमुक चन्देकी व संस्थाकी धनराशिसे वह इतने रुपये खा गया आदि-आदि ।
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