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- अणुव्रत-दृष्टि नहीं चुका सकता तो उसके घर, दुकान आदि निलाम कराके भी वे अदा किये जाते हैं। अस्सु, अणुव्रती अर्थार्जनके इस अनैतिक मार्गपर नहीं जा सकता। अब प्रश्न रहता है व्याजका। अत्यधिक व्याज लेना भी एक अनैतिकता है। यद्यपि इस विषयमें अभी तक कोई नियम लागू नहीं किया गया है तो भी अणुव्रतीको प्रचलित लोकमर्यादाका तो अवश्य ध्यान रखना चाहिए। ...
कुछ व्यक्ति सौ, दो सौ रुपये देते समय व्याजके रुपये उस रकमके साथ गिनकर लेनेवालेसे चिट्ठी लिखा लिया करते है, वह यदि उस प्रांतमें साहूकारी प्रथा मानी जाती हो तो उस पर उक्त नियम लागू नहीं है, यदि ऐसा न हो तो ऐसा करनेमें उपर्युक्त नियम बाधक होगा।
कई २ नौजवान लड़के दुर्व्यसनोंमें फँसकर फिजूल खर्च करते हैं, मां-बाप धनी होते हैं पर जब उनसे उन्हें पर्याप्त धन नहीं मिलता, वे इधर उधरसे जैसी-तैसी चिट्ठियां लिखकर रुपये लेते हैं, व दुर्बुद्विवश यहाँ तक भी लिख दिया करते हैं कि माता या पिताके मरते ही दो सौ के चार सौ रुपये दूंगा। ऐसी चिट्ठियां लिखने और लिखवानेका तो अणुव्रतीके लिये प्रश्न ही नहीं उठ सकता, साधारण व्याज पर भी ऐसे व्यक्तियोंको रुपये देनेमें अणुव्रतीकी अप्रतिष्ठा है, ऐसी स्थितिमें अणुव्रतो सावधान रहे।
६-स्व या पर कन्या और पुत्रके विवाह आदिके निमित्त असत्य न बोलना जैसे-किसी अन्धीको सूझती व किसी सच्चरित्राको दुश्चरित्रा बताना।
विवाह सम्बन्धको लेकर भी समाजमें बड़े २ असत्य बोले जाते हैं, उदाहरणार्थ___ अन्धीको सूझती और बहरीको सुनमेवाली बता देना व उन कमियों का उल्लेख न करना, क्षय, मृगी, मूर्छा, पागलपन, नपुंसकता आदि रोग युक्त सन्तानको निरोग बता देना व उन रोगोंका उल्लेख न करना इत्यादि व इस प्रकारके और भी अनेकों झूठ होते हैं, अणुव्रतीमें उनकी
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