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सत्य- अणुव्रत
अणुव्रतीका व्यवहार विश्वस्त होना चाहिए, साधारण स्थिति व विशेष स्थितिमें उसका आदर्श अक्षुण्ण रहना चाहिए । धरोहर और बंधकको लेकर बहुतसे झगड़े आये दिन हुआ करते हैं । अणुव्रतीके लिये अपने स्वार्थका त्याग करके भी झगड़ेसे बचना श्रेयस्कर है, मानो किसी व्यक्तिने अणुव्रतीके पास अपना गहना बंधक रखा, उसकी अवधि समाप्त हो गई, वह व्यक्ति मांगनेका कोई हक नहीं रखता, फिर भी वर्ष - दो - वर्ष बाद वह यदि रुपये देकर अपनी वस्तु लेना चाहता है तो भी अणुव्रतीको नहीं देनेके झगड़े में नहीं पड़ना चाहिये । इससे समय-समय पर वह सर्व साधारणकी कटु आलोचनाका पात्र बन सकता है ।
यदि बंधककी अवधि समाप्त हो गई, दो-चार बार कह देनेपर भी वह व्यक्ति रुपये नहीं देता है, इसपर यदि अणुव्रतीको वह वस्तु बेचनी पड़े तो मय व्याजके अपने रुपयेसे अधिक अणुव्रती नहीं रख सकता ।
धरोहर रखनेवाला व्यक्ति स्वयं मर गया हो और उसके वारिसोंको उसका कुछ भी पता न हो तो भी अणुव्रतीको वह धरोहर अपनी नहीं कर लेनी चाहिए |
१२ - जाली दस्तखत न बनाना और न बनानेकी सम्मति देना । दुर्बुद्धिसे किसीके नामसे अपने दस्तखत कर देना व किसीके समान अक्षर बनवाकर उसका दुरुपयोग करना अर्थात् बैंकसे व उसके निजी व्यक्तिसे रुपये उड़ा लेना व अन्य किसी प्रकारसे उस सहारेसे धोखा दे देना किसी भी स्थितिमें अणुव्रतीके लिये वर्जनीय है । वह इस प्रकारके षड़यन्त्रोंमें सम्मति भी नहीं दे सकता ।
स्पष्टीकरण
सद्बुद्धिसे जहाँ किसी व्यक्तिकी अनुपस्थितिमें उसके पुत्र, भाई व "मैनेजर आदिको उसके नामके दस्तखत कर देने पड़ते हों वहाँ यह नियम लागू नहीं है ।
१३ – झूठे रेशनकार्ड न बनवाना ।
यह छोटी सी झूठ भी इतनी बड़ी हो गई है कि सभ्य और शिक्षित,
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