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अणुव्रत-दृष्टि - ३२-लोभ या द्वषवश आग न लगाना। ___आग लगना दूसरी बात है, लगाना दूसरी। आग लगना किसी भूलका परिणाम हो सकता है, आग लगाना किसी अन्तस्थित जघन्यतम वृत्तिका। आग लगानेके मुख्यतः दो ही कारण प्रतीत होते हैं-एक लोभ, दूसरा द्वष। . ... लोभ-- जिस मालकी बीमा ( इन्स्योरेंश) बिकी हुई है, भाव अधिक मन्दे हो गये हैं, ऐसी स्थितिमें कितने ही धूर्त व्यक्ति अपने आप अपने ही मालमें आग लगा देते हैं और इन्स्योरेंश कम्पनीसे पूरे रुपये ऐंठनेका प्रयत्न करते हैं। यह अमानवोचित प्रवृत्ति है। अणुव्रती ऐसे कार्यसे सर्वथा बचा रहे। - सुना जाता है कि अमेरिका जैसे पूंजीपति देशोंमें बाजारमें मूल्य न गिर जाय इसलिये ही सहस्रों और लाखों मन वस्तु जला दी जाती है या समुद्र में डुबा दी जाती है। यह भीपरले सिरेकी अनैतिकता है । अणुव्रती ऐसे कार्योंका मनसे भी समर्थन न करे।
द्वेष
साम्प्रदायिक दंगोंमें हजारों अग्निकाण्ड हुए, वे द्वेषमूलक थे, व्यक्तिगत झगड़ोंमें भी मनुष्य कभी-कभी प्रतिपक्षीके मकान, माल आदि में आग लगा देनेके लिये प्रस्तुत हो जाते हैं, वे यह नहीं सोचते कि प्रतिशोध लेनेका यह कितना घृणित तरीका है। यह भी तो नहीं जाना जा सकता, वह आग कहां जाकर बुझेगी। अग्निकाण्डोंमें लाखों करोड़ोंकी हानि और कभी-कभी गांवके गांव साफ हो जाया करते हैं, बैर किसीसे, नाश किसी का वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है।
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