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अहिंसा-अणु
३१ - क्रोधादिवश किसीको गाली न देना । -
गाली देना' अशिष्टताका सूचक है । एक सभ्य मनुष्यके लिये आवश्यक है कि वहअश्लील और भद्द े शब्दोंका उच्चारण न करता रहे। कई कई मनुष्यों के ऐसे भद्द े शब्दोंका, 'तकिया क्लाम' होता है कि वे बातचीतके प्रसङ्गमें पुनः पुनः उन शब्दोंको दुहराते रहते हैं, सुननेवालोंको शर्म मालूम होती है और उन महाशयोंको पता तक नहीं चलता कि हम क्या कहते जा रहे हैं । अणुवतीको अपनी वाणीका अवलोकन करते रहना चाहिए । उसमें कहीं भी यदि अश्लीलता और असभ्यताकी गन्ध हो तो शीघ्रातिशीघ्र उसका संशोधनकर लेना चाहिए । कोमलता और भद्रता उसकी वाणीके सहज गुण होने चाहिए । नियममें क्रोधादिवश गाली देनेका निषेध है उसका तात्पर्य यह नहीं कि अतिरिक्त बुराइयोंके विषयमें कुछ सोचा ही न जाय । नियम केवल संकेत करनेवाले होते हैं, किन्तु उन्हें जीवनमें उतारनेवाले व्यक्तिको नियमके पीछे रही समस्त भावनाओंको भूल नहीं जाना चाहिए। किसी भी नियमका वास्तविक तत्त्व उसके पीछे रही भावनामें अंतनिर्हित रहा करता है । किसी नियमको उसके शब्दार्थ तक ही नहीं मान लेना चाहिए ।
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स्पष्टीकरण
मूर्ख, बदमाश आदि उपालंभ सूचक साधारण शब्द गाली नहीं माने गये हैं । अश्लीलता और असभ्यताके सूचक शब्द विशेषतः गाली के अंतर्गत माने गये हैं ।
क्रोध शब्द के साथ आदि शब्द जोड़ देनेसे हास्य, कौतुहल, भय आदि अन्य स्थितियोंमें भी तत्प्रकारके शब्दों का निषेध हो जाता है ।
यदि आवेशादिवश गालियां मुँह से निकल पड़ती हैं तो दूसरे दिनके आत्म-चिन्तनमें उनके प्रति ग्लानिकी जाय और जितनी बार गाली बोली गई हो उतने द्रव्य खाद्य-पेयके ३१ द्रव्योंसे कम कर लेने चाहियें । यह विधान भूलके प्रायश्चित स्वरूप है ।
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