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अणुव्रत-दृष्टि किन्हीं दुर्गम स्थानोंमें ही प्रायः इन साधनोंकी अपेक्षा रहती है, जहाँ अन्य साधन काम नहीं आ सकते। रिक्शाके लिये यह बात नहीं है। अतः यह नियम व्यवहार्य नहीं माना जायगा ।
स्पष्टीकरण जहाँ ऐसी स्थिति हो कि रिक्शा ही एक मात्र साधन हो और रिक्शा में बैठे विना कोई विशेष अड़चन आती हो तो उस स्थितिमें नियम लागू नहीं है। ३०-किसी भी प्रकारके मृत-भोजमें भोजनार्थ न जाना।
स्पष्टीकरण शोक-प्रदर्शनार्थ दूसरे गांवमें गये व्यक्ति पर यह नियम लागू नहीं है।
जन्म और विवाहकी तरह मृत्युने भी आडम्बरका रूप ले लिया है। एक वृद्धको मृत्युके साथ बहुधा उसके परिवारवालोंकी भी आर्थिक मृत्यु सी हो जाती है। देखनेमें भी यह एक अभद्र व्यवहार मालम पड़ता है कि एक ओर शोक-संतप्त परिवार रोता है, दूसरी ओर सैकड़ों आदमी पाहुने होकर आ बैठते हैं। किसी खी का पति चल बसता है, पुत्र-पौत्र कोई कमानेवाले नहीं हैं, पंच लोग इकट्ठे होकर सोचते हैं, व्यक्ति बड़ा नमूनाथा, उसके पीछे इतना खर्च तो होना ही चाहिए, नगद रुपये नहीं तो क्या हुआ गहने और जमीनका स्टेट काफी है, इस अकेलीको कितने धनकी आवश्यकता है, इस प्रकारसे निर्णय कर बेचारीका बहुत कुछ द्रव्य खर्च करवा देते हैं। किसीके पास कुछ नहीं है तो कर्ज कराके भी सामाजिक प्रतिष्ठाको बचाते हैं। किन्तु वे पंच लोग फिर कभी इकट्ठे होकर नहीं सोचते कि उस बेचारीका आजीविका साधन क्या है ? वह कितने आर्तध्यानमें है ? अस्तु, अणुव्रती उत्थानकी ओर अग्रसर होता हुआ समाजमें एतद्विषयक बहिष्कार प्रथाको जन्म देगा। हालाँकि यह बहिष्कार उसका साधारण सा ही है, फिर भी समाजमें एक नया स्पन्दन पैदा करेगा, स्वभावतः अनेकों लोगोंका ध्यान इस ओर आकर्षित होगा और वे इस प्रथाकी हेयता और उपादेयताके विषयमें कुछ सोचेंगे।
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