________________
अहिंसा-अशुन्नत -- २२-जन्म, विवाह, त्योहार आदिके उपलक्षमें आतिशबाजी न करना और न करनेकी सम्मति देना ।
आतिशबाजी बहुतसे अनर्थों की सूचक है। बारूद आकाशमें उछलकर जहां कहीं भी जा पड़ता है, घास, लकड़ी आदिके ढेरों पर पड़ जानेसे बड़े-बड़े अग्निकांड हो जाते हैं। धड़ाकेसे बहुतसे पक्षी अपने घोंसले को छोड़ देते हैं, रात होनेके कारण बिल्लीके शिकार होते हैं, अतः इस अनर्थकारी प्रथाका निरोध आवश्यक ही है।
आतिशबाजी आडम्बर और फिजूलखर्चीमें भी शुमार होती है। .
२३-तपस्या ( उपवास ) के उपलक्षमें जीमनवार न करना और तद्विषयक जीमनवारमें भोजनार्थ सम्मिलित न होना। ___ बहुतसे लोगोंमें खासकर जैनियों में यह प्रथा है कि आत्मशुद्धिके लिये एकसे लेकर महीनों तक की बिविध तपस्यायें करते हैं, तपस्या की पूर्तिके उपलक्षमें बड़े-बडे जीमनवार करते हैं, ससुराल और पीहर पक्षसे बड़े-बड़े लेन-देन होते हैं। और भी साथ-साथ विविध प्रकारके ऐसे आडम्बर किये जाते हैं। वहाँ आत्म-शुद्धिका लक्ष्यगौण दीख पड़ता है और दिखावे का यहां प्रबल । अणुव्रती ऐसे दिखावे को न प्रोत्साहन दे सकता है और न स्वयं कर सकता है, वह अन्यके यहां होनेवाले जीमनवार, जूलूस आदिमें सम्मिलित नहीं हो सकता। इस विषयमें उसे यथा साध्य असहयोग ही रखना होगा । ___ २४-अपने भाई, पुत्र तथा अन्य पारिवारिक जनोंके साथ और सौत, जेठानी, देवरानी व ननद आदि एवं उनके बच्चोंके साथ दुर्व्यवहार न करना। __देखा जाता है कि बहुतसे मनुष्य सब प्रकार की सुख-सामग्रीके होते हुए भी केवल गृह-कलहोंसे पीड़ित रहते हैं और उन्हें यह मनुष्यलोक भी असुरलोक सा प्रतीत होने लगता है। घरमें धन की कमी हो व अन्य सुख-सुविधाओंका अभाव हो, परयदि गृह-जीवनमें एकत्वका सुख
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com