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· अणुव्रत-दृष्टि किसीके नेहरुवाकी बीमारी हुई हो ऐसा नहीं मिलता। अनछना पानी नहीं पीनेवाला और भी अनेकों रोगोंसे बच जाता है। नियमका लक्ष्य अहिंसाकी साधना है, ऐहिक लाभ प्रासङ्गिक है। .
स्पष्टीकरण .. ___एक बार छाना हुआ पानी दूसरे सूर्योदय तक छाना हुआ ही माना जा सकता है।
शर्वत, लेमन, सोडा आदि पानी रूपमें नहीं माने गये हैं। कुल्ला आदि करनेके विषयमें नियम लागू नहीं है ।
२१-कसाईखानेका काम न करना, न करनेमें सहयोग देना और न कसाई खानेका काम करनेवाली कम्पनीके शेयर लेना।
मांसाहार निमित्त होनेवाली असीम हिंसाके विषयमें यह एक असहयोगात्मक नियम है। अणुव्रती ऐसे व्यवसाय करके या अन्य प्रकारसे तत्प्रकारकी हिंसाओंमें योगदान नहीं करेगा। नियम न० १६, १८, १६ और २१ मांसाहार-निरोधक व मांसाहार-निरोधके पोषक हैं। सम्भवतः इन्हीं नियमोंको देखकर श्री किशोरलाल मश्रुवालाको अहिंसा अणुव्रतके नियमोंमें साम्प्रदायिक दृष्टि लगी हो जैसा कि उन्होंने ५-५-५० के हरिजनमें उल्लेख किया है। किन्तु स्थिति तो यह है कि जब शेष चार अणुव्रतोंके नियमोंमें कोई पंथकी छाप नहीं लगाई गई है जैसा कि उन्होंने स्वीकार किया है, तब एक ही अणुव्रतके सम्बन्धमें उस दृष्टि और उस छमकी आवश्यकता हुई हो यह स्वाभाविक नहीं है। किन्तु मांसाहार निरोध पर जिस मर्यादा तक जोर दिया गया है उसके पीछे एक उद्देश्य है-दृष्टि है जो नियम नं० १६ के विवेचनमें बताई जा चुकी है। सम्भवतः उस दृष्टिकोणमें अहिंसावादी दो मत नहीं होंगे।
स्पष्टीकरण यदि तत्प्रकारकी कम्पनी आदिके शेयर अज्ञात अवस्थामें या अणुव्रती होनेके पूर्व ले लिये हों तो उनके यथाअवसर बेचनेमें नियम बाधक नहीं होगा।
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