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अहिंसा-अणुव्रत हैं, वे इतने करोड़ रुपयोंका अन्न प्रति वर्ष नष्ट कर देते हैं, यदि इतने करोड़ बन्दरोंको मार दिया जाय तो अन्नकी बहुत कुछ सुलभता हो सकती है। मनुष्योंने बड़े २ शहर आबादकर बहुत बड़ा भूखण्ड तो रोक ही रखा है, शेष भूमिसे वह एक इंच भी बिना खती नहीं रखना चाहते, अब बन्दर जायें कहां और खायें क्या ? बन्दरोंमें मनुष्य जितना विवेक होता तो ऐसी स्थितिमें सम्भवतः अवश्य वे बंदरीस्थान की मांग करते। आज बन्दरोंके अवशानका प्रश्न है, सम्भवतः कल हरिणों, पक्षियों और अन्य प्राणियोंकी निर्ममहत्याका प्रश्न होगा। इस प्रकार क्या अन्नकी समस्या हल हो सकती है? लोग कहते हैं कि भारतवासियोंने इस बार बन्दरोंको मारकर प्रकृतिकी अवहेलना की उसका ही यह परिणाम है कि इस वर्षके आदिमें ही भूकम्प, रेल-दुर्घटना, बाढ़
और अग्निकाण्डके रूपमें प्रकृति ( १५ अगस्तके लगभग) का प्रकोप हुआ। इसे एक कल्पनाका अतिरेक भी मान लें किन्तु यह तो स्पष्ट है कि भूमिको निर्बानरी कर देनेके पश्चात् भी अतिवृष्टि अनावृष्टिके रूपमें प्रकृतिके अनेकों प्रकोप होते ही रहेंगे जो कि अन्न नाशके अनन्य कारण हैं । फिर अमानवीय वृत्तिसे किसी एक सम्भावनाको दूर कर देनेसे मनुष्य सुखी होगा ही यह मान लेना एक भ्रान्ति और अन्धविश्वास है। ____ अणुव्रती इस प्रकारकी जघन्यतम हिंसाओंको शिकार या सङ्कल्पी हिंसाके अन्तर्गत मानते हुये उनसे बचता रहे। म्युनिसिपल-बोर्ड या असेम्बलियोंमें तत्प्रकारकी हिंसाओंका प्रस्ताव व समर्थन न करे। .
२०-अनछना पानी न पीना।
यह नियम अनेकों लट आदि प्राणियोंकी हिंसासे और विकारज रोगोंसे अणुव्रतीको बचाता है। नहरुवाकी एक कष्टप्रद बीमारी है । यह अनुभवमें आया है कि अनछना पानी न पीनेवालोंके प्रायः यह निकलता ही नहीं। यही कारण है कि नहरुवाका प्रचार गांवोंमें अधिक है जहाँ जैसा-तैसा पानी पीया जाता है और शहरोंमें अपेक्षाकृत कम। हम साधुजन छाना पानी पीते हैं, सैकड़ों वर्षों के इतिहासमें
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