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अणुव्रत - दृष्टि
कोई सामाजिक व्यक्तित्व नहीं रह जाता । बदनसीबी से यदि किसीके दो चार छव लड़कियां हो जाती हैं तो बस उसके जीवनका उद्देश्य यहाँ ही समाप्त हो जाता है कि वह किसी प्रकार मर पचकर उन लड़कियोंको ठिकानें लगा दे । सामाजिक बहुखर्चीका ही कारण है कि धर्म-प्रधान भारतवर्षकी सुसंस्कृत और आर्य मानी जानेवाली जातियोंमें लड़कियों को जन्मते ही मार देनेका कुकृत्य चला । आज भी सामाजिक प्रथाओंसे बोभित मनुष्य आध्यात्मिकताको ताक पर रखकर हिंसा, असत्य और चौर्य के सारे रास्ते देख लेनेको विवश होता है । अब सोचें, समाजस्थ प्राणी आध्यात्मिकताकी ओर कैसे झुकें ? इसलिये ही आध्यात्मिकता के विकासके लिये आध्यात्मिक उपायोंसे ही सामाजिकताका निर्दोषीकरण अत्यन्त आवश्यक है । इस दृष्टिकोणको ध्यान में रखते हुए ही 'अणुव्रती संघ' में सामाजिकतासे सम्बन्धित नियमोंको विशेष प्रश्रय दिया गया है । यथासम्भव भविष्य में और भी नियम बढ़ाये जा सकेंगे। निर्धारित नियम विशुद्ध आध्यात्मिक पद्धतिसे सामाजिक दुष्प्रथाओंको दूर कर मनुष्य के जीवनको उन्नत करने वाले हैं ।
स्पष्टीकरण
जब तक जीमनवार विषयक कोई राजकीय नियम है तब तक उसका उल्लंघन अणुव्रतीके लिये वर्जनीय है ।
राजकीय कोई प्रतिबन्ध न हो तब यह बाप दादेके परिवारके अतिरिक्त दो सौ व्यक्तियोंसे अधिकका निषेध करनेवाला नियम लागू होगा ।
यदि किसी व्यक्ति विशेषको राजकीय आज्ञा प्राप्त हो तब उस स्थिति में भी बाप दादेके परिवार के अतिरिक्त २०० व्यक्तियोंका निषेध करनेवाला नियम लागू होगा ।
जो अणुव्रती अपने घर में सर्वे सर्वा नहीं है अर्थात् माता-पिता-भाई आदिके अनुशासनमें है, यदि वे माता पिता आदि किसी भी प्रकारका जीमनवार करते हैं, अणुव्रती उसका उत्तरदायी नहीं है बशर्ते कि वह
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