________________
अहिंसा-अणुव्रत आदश बास्तविक है तो अवश्य सर्वसाधारण जनता उनकी ओर झुकेगी। ___ 'अणुव्रती-संघ' का यह नियम सामाजिक पहलुओंको छूता है । नियमोंकी रचना वस्तुतः सार्वदेशिक है । वह मानव-जीवनके प्रत्येक पहलूको छूती है और उनमें धंसी हुई बुराइयोंका निराकरण करती है। भारतीय मनुष्योंका सामाजिक जीवन विशेषतः विकृत हुआ प्रतीत होता है । अतः उनमें सुधार लानेके लिये ऐसे नियमोंकी आवश्यकता मानी गई है । नियमावलीमें ऐसे और भी अनेकों नियम हैं और यथासम्भव यथासमय बनते भी रहेंगे।
कुछ लोगोंकी जिज्ञासा रहा करती है कि विशुद्ध आध्यात्मिक उद्देश्यवाले संघके नियमोंमें ये समाज सुधारके नियम कैसे ? यहाँ तो व्यक्ति के आत्म-सुधार या आत्मोत्थानकी ही चिन्ता होनी चाहिए, समाजकी चिन्ता सामाजिक कर्णधार करेंगे।
वस्तुस्थिति यह है कि बहुधा व्यक्ति और समाजको एकान्ततः भिन्न मान लिया जाता है, पर तत्त्वतः यह नहीं है । व्यक्तियोंका ही समाज है
और समाजका ही अंग ब्यक्ति है। अतः व्यक्ति-सुधार स्वतः समाज-सुधार हो ही जाता है। दूसरी बात रहती है आध्यात्मिकता और सामाजिकता की । आध्यात्मिकता और सामाजिकता कई दृष्टिकोणोंसे भिन्न होती हुई भी परस्पर नितान्त निरपेक्ष नहीं है। अनुकूल सामाजिकतामें ही आध्यात्मिकताका समिष्ट रूपमें विकास हो सकता है। आजके मनुष्यमें आध्यात्मिकताका पर्याप्त विकास न हो सकनेका एक कारण आज की सामाजिकता भी है। आज मनुष्यकी श्रेष्ठता धनमें ही कल्पित है । बिना पर्याप्त धन-संग्रहके समाज में मनुष्यका जीना भी एक समस्या बन जाता हैं। बिना पूरा दहेज दिये, बिना बड़े जीमनवार किये लड़कियोंको व्याहने वाला कौन ? बिना पूरा गहना दिखाये लड़केको लड़की देनेवाला कौन ? बस! मनुष्य इस प्रकारकी अनेकों स्थितियोंका दास होकर अर्थार्जनके ही पीछे पड़ता है। यदि ऐसा न करे तो उसका
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com