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अहिंसा-अणुव्रत विदेशास-विदेशवास में उक्त नियम लागू नहीं होता।
यह स्पष्टीकरण भी अस्वाभाविक लगे ऐसा नहीं है । एक भारतीय रहे अमेरिकामें, उपयोग करना पड़े उसे भारतीय वस्त्रका-यह असाध्य नहीं तो दुसाध्य अवश्य है।
इस विषय में यह प्रश्न भी बहुधा आचार्यवर के समक्ष आया करता है कि जिस व्यक्तिने अपने विदेशवास की स्थितिमें विदेशी वस्त्र बनवाये, अपने देशमें आनेके बाद उन वस्त्रोंका उपयोग करने के लिये वह स्वतंत्र है या नहीं ? प्रश्नका समाधान यही है, कोई अणुव्रती, वस्त्रोंका उपयोग स्वदेश में भी होता रहेगा इस दृष्टिकोण से, अधिक वस्त्र बनवाने में लेशमात्र भी स्वतंत्र नहीं है, आवश्यकतवश जितने वस्त्र वह बनवा चुका है उन वस्त्रोंका उपयोग वह कहीं भी करे, नियम बाधक नहीं है।
स्वदेश की मर्यादा
जिस देशमें जो व्यक्ति रहता है उस एक राजसत्तासे अनुशासित देश उस व्यक्तिके लिये स्वदेश है। एक व्यक्ति जो एक देशको छोड़कर दूसरे देशके नागरिक अधिकारों को प्राप्त कर लेता है तब से वही देश उसके लिये स्वदेश है। पूर्वकालिक स्वदेश उसके लिए विदेश हो जाता है।
भौगोलिक सीमाके घटाव और बढ़ाव के साथ भी स्वदेश की मर्यादा सम्बन्धित रहेगी। अर्थात् कोई नया देश स्वराज-सत्ता के अनुशासन में किसी कारण से आता है तो स्वदेश की परिधि बढ़ेगी, यदि स्थितिवश किसी अन्य देशमें मिल जाता है तो स्वदेश की सीमा घट जायेगी।
स्वदेश से बाहर बने वस्त्रोंका परित्याग है अतः जो वस्त्र विदेशी सूतसे स्वदेशमें बनता है उसके विषय में उक्त नियम निषेधक नहीं है । इसी प्रकार जो वस्त्र स्वदेशी सूतसे विदेश में बनकर आता है वह विदेशी को कोटिमें ही माना गया है। .
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