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अणुव्रत-दृष्टि
'स्वदेश' शब्द से यहाँ केवल भारतवर्ष का ही तात्पर्य नहीं । कोई अणुव्रती यदि पाकिस्तानवासी है तो उसके लिये भी उक्त नियम अपने देशके अर्थमें उसी प्रकार लागू है, इसी प्रकार अन्य सब देशवासियों के । इससे अपने आप यह सूचित हो जाता है कि नियमोक्त स्वदेश शब्द 'स्व' और 'पर' का भेद - वर्धक नहीं अपितु विशुद्ध आध्यात्मिकतापूर्वक व्यक्ति के हिंसा क्षेत्र को मर्यादित करने वाला है।
व्यक्ति की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को और लालसाओं को सीमित करना, सन्तोष और सादगीको जीवन में उतारना, ये तो अन्य दृष्टिकोण भी इस नियम के मूल में रहे हैं । विभिन्न प्रकार के वस्त्रों का उपयोग अधिकरतर फैशन के लिये होता है। खरीददार सर्वप्रथम यह देखता है कि मैं वही वस्त्र खरीदूं जिसका सुन्दर रङ्ग और सुन्दरतम डिजाइन हो । इस नियम के अनुसार 'अणुव्रती' को स्वदेश निष्पन्न वस्त्रमें ही सन्तोष करना होगा चाहे वह विदेशोत्पन्न वस्त्र के समान आकर्षक न भी हो । अतः यह नियम आध्यात्मिक तथ्यको लिये हुए सामाजिक और राष्ट्रीय क्षेत्रमें भी कितना उपयोगी है यह अपने आप सुस्पष्ट है।
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स्पष्टीकरण
विशेष परिस्थिति और विदेशवास इन दो स्थितियोंका यहाँ उल्लेख किया गया है।
विशेष परिस्थिति-
१ - कोई राष्ट्रीय संकट काल, जब कि देशकी वस्त्र - समस्या बाहर से आये वस्त्रसे ही हल होती हो, देशोत्पन्न वस्त्र सुलभ ही न हो ।
२ - आकस्मिक आवश्यकता - जैसे यात्रामें; जब कि अचानक शीतादि का प्रकोप हो गया हो, अन्य साधन न हो ।
३ - आकस्मिक बीमारी - जब कि अन्य साधन का अभाव हो आदि ।
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