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साधनाके चार नियम
१०६ (७) दूसरोंकी बराबरी करनेके लिये नैतिक जीवनसे गिरानेवाले कर्म तो नहीं किये ?
(८) किसीके साथ अशिष्ट व्यवहार तो नहीं किया, बोलने में अश्लील शब्दोंका प्रयोग नहीं किया ?
() बड़े बुड्ढोंकी अवहेलना या उनके साथ अविनय तो नहीं किया ?
(१०) अविनय, भूल या अपराध हो जाने पर क्षमा-याचना की या नहीं ?
(११) बालक-बालिकाओंको कहना न मानने पर निर्दयतासे पीटा तो नहीं ?
(१२) झूठ बोलकर अपना दोष छिपानेकी कोशिश तो नहीं की ?
(१३) स्वार्थ से या बिना स्वार्थसे किसी झूठी बातका प्रचार तो नहीं किया ?
(१४) किसीकी कोई वस्तु चुराई तो नहीं ?
(१५) पर-स्त्रीको पाप दृष्टिसे तो नहीं देखा या पर-पुरुषको पापदृष्टिसे तो नहीं देखा ?
(१६) अप्राकृतिक मैथुन तो नहीं किया ?
(१७) धन पानेके लिये कोई विश्वासघात आदि अमानवोचित काम तो नहीं किया।
(१८) किसीके साथ कोई मानसिक, वाचिक व कायिक दुर्व्यवहार तो नहीं किया ?
(१९) आज मुझे क्रोध तो नहीं आया और आया तो क्यों, किस पर और कितनी बार ?
(२०) किसीको ठगने या फंसाने की कोशिश तो नहीं की ?
(२१) भांग, गांजा, सुलफा आदि नशीली वस्तुओंका प्रयोग तो नहीं किया ?
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