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संहिताको वि० सं० १६४१ में आश्विन शुक्ला दशमी रविवारके दिन समाप्त किया था।
कवि राजमल्लकी तीसरी रचना जम्बूस्वामिचरित है । यह ग्रन्थ वि० सं० १६३२ में चैत्र वदी ८ के दिन पुनर्वसु नक्षत्रमें बनाकर समाप्त किया गया था । अर्थात् यह काव्य लाटी-संहितासे नौ वर्ष पूर्व बन चुका था । उस समय अर्गलपुर ( आगरे ) में अकबर बादशाहका राज्य था । इसमें भी कविने चगत्ता (चगताई) जातिके शिरोमणि बाबर और हुमायूँ बादशाहका वर्णन करते हुए बादशाह अकबरका सविस्तर वर्णन दिया है, और अकबरके ' जेजिया ' कर और मद्यकी बन्दी करानेका उल्लेख किया है । ग्रन्थकारने इस काव्यको अग्रवाल जातिमें उत्पन्न गर्गगोत्री साधु ( साहु) टोडरके लिये बनाया था। ये साहु टोडर महाउदारता, परोपकारिता, दानशीलता, विनयसंपन्नता आदि सर्व गुणोंसे सम्पन्न थे। ये भटानियाँ ( कोल ) नगरके रहनेवाले, काष्ठासंघी कुमारसेनकी आम्नायके थे । कविने लाटी - संहिताकी तरह यहाँ भी साहु टोडरके वंश आदिका विस्तृत वर्णन किया है । साहु टोडरको कविने वैष्णवमतानुयायी गढमल्ल साहु और अरजानी- पुत्र ठाकुर कृष्णमंगल चौधरीका प्रियपात्र, तथा टकसालके काम में बहुत दक्ष बताया है ।
एक बारकी बात है कि ये साहु टोडर सिद्धक्षेत्रकी यात्रा करने मथुरामें आये । वहाँपर बीचमें जम्बूस्वामीका स्तूप ( निः सहीस्थान ) बना हुआ था, और उनके चरणोंमें विद्युच्चर मुनिका स्तूप था ।
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O कोल' अलीगढ़का पुराना नाम है। भटानिया अलीगढ़ के पास कोई यान मालूम होता है।