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ग्रन्थ है । कविने इस रचनाको अनुच्छिष्ट और नवीन कहकर
सूचित किया है। इसमें सात सर्ग हैं। इसकी पद्य-संख्या लगभग १६०० के है । यह ग्रन्थ अग्रवाल- वंशावतंस मंगलगोत्री साहु दूदाके पुत्र संघके अधिपति 'फामन नामके धनिकके लिये बनाया गया था। कविने फामनके वंशका विस्तृत वर्णन करते हुए, फामन के पूर्वजोंका मूल निवासस्थान 'डौकनि ' नगरी बताया है । इन फामनने स्वयं ही वैराट नगरके 'ताल्हू' नामक विद्वानकी कृपासे धर्म-लाभ किया था । कविने इसी वैराट नगरके जिनालय में रहकर लाटी-संहिताकी रचना की है। लाटी-संहितामें कविने वैराट नगरका और इस नगरके स्वामी अकबर बादशाहका विस्तृत वर्णन किया है। यह सब ऐतिहासिक वर्णन लाटी-संहिताके कथामुख- वर्णन नामके प्रथम सर्गमें उपलब्ध होता है । अन्य छह सर्गों में ग्रन्थकारने आठ मूलगुण, सात व्यसन, सम्यग्दर्शन और श्रावकके बारह व्रतोंका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है । ग्रन्थमें सम्यग्दर्शनके वर्णन करनेके लिये दो सर्ग और अहिंसाशुत्रतके लिये एक स्वतंत्र सर्गकी रचना की गई है । ग्रन्थमें अनेक उद्धरण 'उक्तं च के रूपमें पाये जाते हैं; जो विशेष करके कविके गोम्मटसार-सटीक आदि सिद्धान्त-प्रन्थोंके और कुन्दकुन्द आचार्यके अध्यात्म-प्रन्थों के विशाल विस्तृत वाचनको सूचित करते हैं । कवि राजमलने लाटी
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'यह बैराट' नगर वहीं जान पड़ता है जिसे 'बैराट ' भी कहते हैं और जो जयपुरसे करीब ४० मीलके फासलेपर है। किसी समय यह विराट अथवा मत्स्य देशकी राजधानी थी, और यहॉपर पांडवोंका गुप्त वेशमें रहना कहा जाता है "। लाटीसंहिताकी भूमिका पृ० १९.