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गया है। इसकी और अध्यात्मकमलमार्तंडकी प्रेस-कापी नातेपुते ( शोलापुर ) के अध्यापक पं० फूलचन्द्रजी शास्त्रीके द्वारा तैयार कराई गई थी।
अध्यात्मकमलमार्तण्डकी दो ही प्रतियाँ उपलब्ध हो सकी । एक सरस्वती-भवन बम्बईकी और दूसरी प्रति पं० नाथूराम प्रेमीजीके पास की। सरस्वती-भवनकी प्रतिके लेखकने उसकी भांडारकर इन्स्टिट्यूटकी सं० १६६३ वैशाख सुदी १३ शनिवारके दिन लिखी हुई प्रतिके आधारसे नकल की है । मालूम नहीं मूल प्रतिके इतनी प्राचीन होनेपर भी यह प्रति इतनी अशुद्ध क्यों है ? संभव है नकल करनेमें लेखक महाशयकी कृपा हुई हो । दूसरी प्रति सं० १८४४ श्रावण कृष्णा षष्ठीके दिनकी लिखी हुई है। इस प्रतिके ऊपर रबरकी मोहर मारी हुई है, जिसपर ' भट्टारक श्री महेश्वरकीरतीजी, सवाई जयपुर संवत् १९३९ ' खुदा हुआ है । दुर्भाग्यसे यह प्रति भी शुद्ध नहीं है। इस प्रतिके लेखक सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक हैं । यह जिनदास पंडितकी अशुद्ध प्रतिके आधारसे शीघ्रतामें, सर्वसुख नामके छात्रके लिये, जिस समय वृन्दावती नगरी में व्यसनहरि (8) नृपका राज्य था, पार्श्वनाथके मन्दिरमें लिखी गई है । इस प्रतिमें लगभग दो परिच्छेदोंके ऊपर टिप्पणी भी है । मालूम नहीं यह अधूरी टिप्पणी स्वयं पं० राजमल्लकी है अथवा किसी दूसरे विद्वान्की । इन दोनों प्रतियोंके खास खास पाठांतरोंको फुटनोटमें दे दिया गया है । जुबिलीबाग, तारदेव
जगदीशचन्द्र ९।१०।३६
बम्बई