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विधुच्चर तथा जम्बूकुमारका बहुत रोचक संवाद हुआ । अन्तमें जम्बूखामीकी विजय हुई। उन्होंने जिन-दीक्षा ग्रहण की । साथमें विधुचरको भी उपदेश लगा। वह भी अनेक लोगोंके साथ दीक्षित हुआ। अन्तमें ये दोनों अनेक मुनियोंके साथ विपुलाचल पर्वतपर निर्वाणको पधारे।
मूल प्रतियाँ अन्तमें कुछ शब्द मूल प्रतियोंके विषयमें भी लिख देना उचित है । जम्बूस्वामिचरित देहलीके सेठके कूचेवाले जैनमंदिरकी प्रतिके ऊपरसे संपादित किया गया है। इसके लिये इसके प्रेषक बाबू पन्नालालजी अग्रवालको अनेक धन्यवाद हैं। इस प्रतिके ऊपर कोई संवत् नहीं है। फिर भी यह प्रति प्राचीन मालूम होती है। यह बीचमेंसे कई स्थलोंपर त्रुटित भी है । बहुत प्रयत्न करनपर भी इस पुस्तककी दूसरी कोई प्रति न मिलनेसे, इसी एक और सो भी अशुद्ध प्रतिके आधारसे ग्रन्थका सम्पादन करना पड़ा है। मूल प्रातके जो पाठ अशुद्ध जान पड़े, उन्हें मूल पाठमें रखकर कोष्ठकमें शुद्ध पाठ दिया
१ हेमचन्द्र और जयशेखरके कथानकमें जम्बूकुमारके पिताका नाम ऋषभदास और माताका नाम धारिणी आता है । तथा जम्बूकुमारका बार कन्याओंकी जगह आठ कन्याओंके साथ विवाह होता है। इन कथानकोंमें विद्युच्चरकी जगह प्रभवचोरका नाम आता है । (पं० राजमारके जम्बूखामिचरितमें भी-'प्रभवादिसुसंज्ञकाः प्रभवका नाम आता है, पर ये कौन थे, इसका इसमें कुछ जिकर नहीं आता)। इसके अतिरिक्त जम्बूकुमार और उनकी स्त्रियों तथा प्रभवके बीच में जो संवाद हुए उनमें कुबेरदत्त, महेश्वरदत्त, अंगारकारक, शंखधमक, विद्युन्माली, बुद्धिसिद्धि, अश्व, ललितांग आदिकी कथायें आती हैं, जो पं० राजमलके जम्बूस्वामिचरितमें नहीं पाई जातीं। हेमचन्द्र और जयशेखरसूरिकी अंतकथाओंमें भी कुछ सामान्य हेर फेर पाया जाता है।