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भी आ गया है। बीच बीचमें धर्मशास्त्र, और कहीं कहीं नीति भी आती है । जम्बूकुमारके साथ जो उनकी स्त्रियों और विद्युच्चर के संवाद हुए हैं, वे बहुत रोचक हैं, और ऐतिहासिक दृष्टिसे भी महत्त्वके हैं ।
कवि राजमल्लकी चौथी कृति अध्यात्मकमलमार्त्तण्ड है । इस ग्रन्थमें चार परिच्छेद हैं, जिनमें सब मिलाकर २५० श्लोक संख्या है। पहिले परिच्छेद में मोक्ष और मोक्षमार्गका लक्षण, दूसरेमें द्रव्यसामान्य, तीसरे में द्रव्यविशेष और चौथे परिच्छेद में सात तत्त्व और नौ पदाथका वर्णन है । कविने इस ग्रन्थका 'काव्य' कहकर उल्लेख किया है, और इसके पठन करनेसे सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होना बताया है। अमृतचन्द्रसूरिके आत्मख्याति समयसारकी तरह यहाँ भी ग्रन्थके आदिमें चिदात्मभावको नमस्कार करके, संसार-तापकी शान्तिके लिये कविने अपने ही मोहनीय कर्मके नाश करनेके लिये इस शास्त्रकी रचना की है । ग्रन्थकारने ग्रन्थ में कुन्दकुन्द आचार्य और
१ कविने वीरोंको जोश देते हुए लिखा है:
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कमोऽयं क्षात्रधर्मस्य सन्मुखत्वं यदाहवे । वरं प्राणात्ययस्तत्र नान्यथा जीवनं वरं ॥
ये दृष्ट्वारिबलं पूर्ण तूर्णं भन्नास्तदाहवे ।
पलायंति विना युद्धं धिक् तानास्यमलीमसान् ॥ जम्बूखामिचरित ६-३०, ३२ ।
२ उदाहरण के लिये मधु-बिन्दुबाले दृष्टांतकी कथा महाभारत स्त्रीपर्व में, बौद्धांके अवदान साहित्यम और क्रिश्चियन-सहित्यमें पाई जाती है, इसलिये यह संसार के सर्वमान्य कथा-साहित्य की दृष्टिसे बहुत महत्त्वको है । शृगाल और धनुषकी कथा भी हितोपदेशमें आती है। इसी तरह अन्य कथाओंके भी तुलनात्मक अध्ययन करनेसे इस विषयकी विशेष खोज हो सकती है।