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________________ 170 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य अन्य सब क्षेत्रों की उलझन भरी समस्याओं को सुलझाने के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। अमेरिका के प्रसिद्ध प्रोफेसर आर्चा, अनेकांत की महत्ता व्यक्त करते हुए लिखते हैं-The Anekant is an important principle of Jain logic, not commonly asserted by the eastern or Hindu logician, which promises much for world peace through metaphysical harmony. इसी प्रकार जैन दर्शन के ‘कर्मसिद्धांत' और विज्ञान की नवीन शाखा ‘परामनोविज्ञान', अणु की असीम शक्ति का आविर्भाव करने वाले विज्ञान की 'अणु-भेदन प्रक्रिया' और आत्मा की असीम शक्ति का आविर्भाव करने वाली 'भेद-विज्ञान की प्रक्रिया' तथा गणित सिद्धांतों में निहित समता व सामञ्जस्य को देखकर उनकी देन के प्रति मस्तक आभार से झुक जाता है। सारांश यह है कि जैनागमों में प्रणीत सिद्धांत इतने मौलिक एवं सत्य हैं कि विज्ञान के अभ्युदय से उन्हें किसी प्रकार का आघात नहीं पहुँचने वाला है, प्रत्युत् वे पहले से भी अधिक निखर उठने वाले हैं तथा विज्ञान के माध्यम से वे विश्व के कोने-कोने में जनसाधारण तक पहुँचने वाले हैं। विज्ञान-जगत् में अभी हाल ही की आत्मतत्त्वशोध से आविर्भूत आत्म-अस्तित्व की संभावनाएँ एवं उपलब्धियाँ विश्व के भविष्य की ओर शुभ संकेत हैं। विज्ञान की बहुमुखी प्रगति को देखते हुए यह दृढ़ व निश्चय के स्वर में कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं है जब आत्म-ज्ञान और विज्ञान के मध्य की खाई पट जायेगी और दोनों परस्पर पूरक व सहायक बन जायेंगे। विज्ञान का विकास उस समय विश्व को स्वर्ग बना
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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