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________________ त्रसकाय 169 जिस प्रकार स्याद्वाद में ‘अस्ति' और 'नास्ति' की बात मिलती है उसी प्रकार है' और 'नहीं' की बात वैज्ञानिक क्षेत्र के सापेक्षवाद में भी मिलती है। पदार्थ के तोल को ही लीजिए। जिस पदार्थ को साधारणतः हम एक मन कहते हैं। सापेक्षवाद कहता है कि यह 'है' भी 'नहीं' भी। कारण कि कमानीदार तुला से जिस पदार्थ का भार पृथ्वी के धरातल पर एक मन होगा वह ही पदार्थ, मात्रा में कोई परिवर्तन न होने पर भी पर्वत की चोटी पर तोलने पर एक मन से कम भार का होगा। पर्वत की चोटी जितनी अधिक ऊँची होगी भार उतना ही कम होगा। अधिक ऊँचाई के कारण ही उपग्रह में स्थित व्यक्ति, जो पृथ्वी के धरातल पर डेढ़-दो मन वजन वाला होता है, वहाँ वह भारहीन हो जाता है। पदार्थ या व्यक्ति का भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न वजन का होना अपेक्षाकृत ही है। दूसरा उदाहरण और लीजिए-एक आदमी लिफ्ट में खड़ा है। उसके हाथ में संतरा है। जैसे ही लिफ्ट नीचे उतरना शुरू करता है वह आदमी उस संतरे को गिराने के लिए हथेली को उल्टी कर देता है। परंतु वह देखता है कि संतरा नीचे नहीं गिर रहा है और उसी की हथेली से चिपक रहा है तथा उसके हाथ पर दबाव भी पड़ रहा है। कारण यह है कि संतरा जिस गति से नीचे गिर रहा है उससे लिफ्ट के साथ नीचे जाने वाले आदमी की गति अधिक है। ऐसी स्थिति में वह संतरा नीचे गिर रहा है और नहीं भी। लिफ्ट के बाहर खड़े व्यक्ति की दृष्टि से तो वह नीचे गिर रहा है परंतु लिफ्ट में खड़े मनुष्य की दृष्टि से नहीं। आधुनिक विज्ञान इसी सापेक्षवाद के सिद्धांत (Theory of relativity) का उपयोग कर दिन दूनी और रात चौगुनी उन्नति कर रहा है। सापेक्षवाद न केवल विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि दार्शनिक, राजनैतिक आदि
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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