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________________ 168 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य या अनेकांतवाद है। अलबर्ट आइंस्टीन के सापेक्षवाद (Theory of Relativity) के आविष्कार (जैनागमों की दृष्टि से आविष्कार नहीं) के पूर्व जैनदर्शन के इस सापेक्षवाद सिद्धांत को अन्य दर्शनकार अनिश्चयवाद, संशयवाद आदि कहकर मखौल किया करते थे। परंतु आधुनिक भौतिक विज्ञान ने द्वन्द्वसमागम (दो विरोधों का समागम) सिद्धांत देकर दार्शनिक जगत् में क्रान्ति कर दी है। भौतिक विज्ञान के सिद्धांतानुसार परमाणु मात्र आकर्षण गुण वाले (Proton) और विकर्षण गुण वाले ऋणाणु (Electron) के संयोग का ही परिणाम है। अर्थात् धन और ऋण अथवा आकर्षण और विकर्षण से दोनों विरोधों का समागम ही पदार्थ रचना का कारण है। पहले कह आये हैं कि जैसे जैनदर्शन पदार्थ को नित्य (ध्रुव) और अनित्य (उत्पत्ति और विनाश युक्त) मानता है उसी प्रकार विज्ञान भी पदार्थ को नित्य (द्रव्य रूप से कभी नष्ट नहीं होने वाला) तथा अनित्य (रूपान्तरित होने वाला) मानता है। इस प्रकार दो विरोधी गुणों को एक पदार्थ में एक ही देश और एक ही काल में युगपत् मानना दोनों ही क्षेत्रों में सापेक्षवाद की देन है। दो रेलगाड़ियाँ एक ही दिशा में पास-पास 40 मील और 30 मील की गति से चल रही हैं-तो 30 मील की गति से चलने वाली गाड़ी की सवारियों को प्रतीत होगा कि उनकी गाड़ी स्थिर है और दूसरी गाड़ी 4030 = 10 मील की गति से आगे बढ़ रही है, जब कि भूमि पर स्थित दर्शक व्यक्तियों की दृष्टि में गाड़ियाँ 40 मील और 30 मील की गति से चल रही हैं। इस प्रकार गाड़ियों का स्थिर होना तथा विभिन्न गतियों वाला होना सापेक्ष ही है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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