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[दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-साधु सूक्ष्म-हिंसा का भी त्यागी होता है, अत: सचित्त जलादि के वर्जन की तरह, वह अचित्त पदार्थों में कोयले, भस्मी की ढेरी, तुष-धान्य के छिलके और गोबर का सचित्त पृथ्वी के रजकणों से भरे पैरों से अतिक्रमण नहीं करे । इस प्रकार इस गाथा में पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना से बचने का मार्ग बताया गया है।
ण चरेज्ज वासे वासंते, महियाए वा पडंतिए।
महावाए व वायंते, तिरिच्छसंपाइमेसु वा ।।8।। हिन्दी पद्यानुवाद
बरस रही वर्षा, कुहरा गिरता या आंधी चलती हो।
पथ चले न मुनि टिड्डी दल से, आक्रान्त अगर वह धरती हो।। अन्वयार्थ-वासे वासंते = बरसात हो रही हो । वा = अथवा । महियाए = कुहरा के । पडंतिए = गिरते हुए । व महावाए = तथा महावात, आंधी के । वायंते = चलते रहने पर । वा तिरिच्छ संपाइमेसु = अथवा पतंगादि जीव भूमि पर गिर रहे हों, ऐसी स्थिति में । ण चरेज्ज = मुनि भिक्षा को नहीं जावे ।
भावार्थ-भिक्षार्थ जाते समय यदि वर्षा हो रही हो, कुहरा गिर रहा हो अथवा महावात यानी अन्धड़ चल रहा हो, वैसे समय मुनि भिक्षा के लिए नहीं जावे, मार्ग में छोटे-बड़े संपाती कीट पतंगे आदि जीव गिर रहे हों, तब भी भिक्षा के लिये नहीं जाना चाहिये । (साधु 6 कारणों से आहार का परित्याग करता है, उसमें एक कारण ‘पाणिदया व हेउ' प्राणियों की दया के लिये भी आहार छोड़ना बताया गया है)।
ण चरेज्ज वेससामंते, बंभचेरवसाणुए।
बंभयारिस्स दंतस्स, हुज्जा तत्थ विसुत्तिया ।।७।। हिन्दी पद्यानुवाद
वेश्या पाड़े में ब्रह्मवती, भिक्षा को कभी नहीं जाए। चाहे हो दान्त ब्रह्मचारी, चंचल मन कहीं मोड़ खाए।।
अन्वयार्थ-बंभचेरवसाणुए = ब्रह्मचर्य के वश में रहने वाला । वेससामंते = वेश्याओं के मुहल्ले में। ण चरेज्ज = नहीं जाये, क्योंकि। तत्थ = वहाँ वेश्याओं के मुहल्ले में। दन्तस्स = जितेन्द्रिय । बंभयारिस्स = ब्रह्मचारी के । विसुत्तिया = चित्त में चंचलता। हज्जा = उत्पन्न हो सकती है।
भावार्थ-साधुओं के शीलधर्म की सुरक्षा के लिये कहा गया है कि ब्रह्मचर्य का वशवर्ती मुनि वेश्याओं के घरों के पास होकर नहीं जावे । वहाँ का वातावरण वासना को जागृत करने वाला होता है। अत: जितेन्द्रिय ब्रह्मचारी के वेश्याओं के निवास-स्थान की ओर जाने से मन विकार मार्ग में मुड़ सकता है। इसलिये संयम-धर्म के पालन के लिये वेश्याओं के आवास के पास मुनि न जाए, क्योंकि वह मुनियों के योग्य स्थान नहीं है।