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तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ]
51} समाश्वासयति, समाश्वास्य ततः प्रतिनिष्क्राम्यति प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव पौषधशाला तत्रैव उपागच्छति उपागत्य यथा अभयः, विशेषत: हरिणैगमेषिण: अष्टमभक्तं प्रगृह्णाति यावत् अंजलिं कृत्वा एवम् अवादीत्-इच्छामि खलु देवानुप्रिय ! सहोदरं
कनीयांसं भ्रातरं वितीर्णम् । अन्वयार्थ-तए णं से कण्हे वासुदेवे = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव, देवइं देवि एवं वयासी- = देवकी देवी को इस प्रकार बोले-, मा णं तुब्भे अम्मो ! = हे माता ! तुम इस प्रकार, ओहय जाव झियायह = उदास और चिंतित मत होवो । अहण्णं तहा वत्तिस्सामि = मैं ऐसा काम करूँगा, जहाणं मम सहोयरे = जिससे मेरे सहोदर, कणीयसे भाउए भविस्सइ = छोटा भाई होगा, त्ति कट्ट देवइं देविं = ऐसा करके श्री कृष्ण ने देवकी देवी को, ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव = उन इष्ट व कान्त यावत्, वग्गूहिं समासासेइ = वचनों से आश्वस्त किया, समासासित्ता तओ पडिणिक्खमइ = आश्वासन देकर वहाँ से बाहर निकले, पडिणिक्खमित्ता जेणेव = वहाँ से निकलकर जहाँ पर, पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ = पौषधशाला थी वहाँ आये। उवागच्छित्ता जहा अभओ = वहाँ आकर अभय कमार की तरह, नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं = विशेष रूप से हरिणैगमेषी का अष्टम भक्त व्रत (तीन उपवास), पगिण्हइ = ग्रहण किया, जाव अंजलिं कट्ट एवं वयासी-= यावत् दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा-, इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय ! मेरे, सहोयरं कणीयसंभाउयं विदिण्णं = छोटा सहोदर भाई हो, यह मैं चाहता हूँ।
भावार्थ-माता की यह बात सुनकर श्री कृष्ण वासुदेव देवकी महारानी से इस प्रकार बोले-“हे माताजी! आप उदास अथवा चिन्तित होकर अब आर्तध्यान मत कीजिए। मैं ऐसा प्रयत्न करूँगा कि जिससे मेरे एक सहोदर छोटा भाई उत्पन्न हो।” इस प्रकार कह कर श्री कृष्ण ने देवकी माता को प्रिय, अभिलषित, मधुर एवं इष्ट यावत् कान्त वचनों से धैर्य बंधाया, आश्वस्त किया।
इस प्रकार अपनी माता को आश्वस्त कर श्री कृष्ण अपनी माता के महल से निकले । निकलकर जहाँ पौषधशाला थी वहाँ आये। पौषधशाला में आकर जिस प्रकार अभयकुमार ने अष्टम भक्त तप (तेला) स्वीकार करके अपने मित्र-देवता की आराधना की थी, उसी प्रकार श्री कृष्ण वासुदेव भी अभय कुमार की तरह अष्टम भक्त तप यानी तेला करके हरिणेगमैषी देवता की आराधना करने लगे। आराधना से आकृष्ट होकर हरिणेगमैषी देव श्री कृष्ण के सन्मुख उपस्थित हुआ और श्री कृष्णवासुदेव से बोला-“हे देवानुप्रिय ! आपने मुझे क्यों याद किया है ? मैं उपस्थित हूँ। कहिये आपका क्या मनोरथ है ? मैं आपका क्या शुभ कर सकता हूँ?"