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[अंतगडदसासूत्र जहा अभओ-जिस प्रकार अभयकुमार ने अपनी छोटी माता धारिणी के दोहद की पूर्ति के लिए अपने पूर्व भव के सौधर्म कल्पवासी देव को पौषधयुक्त तेले के तप से स्मरण किया, उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने पौषधशाला में जाकर विधियुक्त अष्टम तप द्वारा हरिणेगमेषी देव का ध्यान किया। तेले की पूर्ति पर उस देव का आसन चलायमान हुआ और अवधिज्ञान के उपयोग से उसने जाना कि श्रीकृष्ण मुझको याद कर रहे हैं, तब वह देव उत्तर वैक्रिय करके श्री कृष्ण के पास आया।
तब श्री कृष्ण वासुदेव ने दोनों हाथ जोड़कर उस देव से ऐसा कहा-“हे देवानुप्रिय! मेरे एक सहोदर लघुभ्राता का जन्म हो, यह मेरी इच्छा है।"
सूत्र 13
मूल- तए णं से हरिणेगमेसी देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-होहिइ णं
देवाणुप्पिया! तव देवलोयचुए सहोयरे कणीयसे भाउए से णं उम्मुक्कबालभावे जाव जोव्वणगमणुप्पत्ते अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतियं मुण्डे जाव पव्वइस्सइ । कण्हं वासुदेवं दोच्चंपि तच्चंपि एवं
वयइ । वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। संस्कृत छाया- ततः खलु स: हरिणैगमेषी देव: कृष्णं वासुदेवम् एवम् अवदत्-भविष्यति खलु
देवानुप्रिय! तव देवलोकच्युतः सहोदर: कनीयान् भ्राता सः खलु उन्मुक्तबालभाव: यावत् यौवनमनुप्राप्त: अर्हतः अरिष्टनेमे: अन्तिकम् मुण्डो यावत् प्रव्रजिष्यति । कृष्णं वासुदेवं द्विवारं त्रिवारमपि एवं वदति। उदित्वा यस्या: एव दिश: प्रादुर्भूतस्तामेव
दिशं प्रतिगतः। अन्वयार्थ-तए णं से हरिणेगमेसी = तब वह हरिणैगमेषी, देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी = देव कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार बोला, होहिइ णं देवाणुप्पिया! = हे देवानुप्रिय ! होगा, तव देवलोयचुए = देवलोग से च्युत हुआ तेरे, सहोयरे कणीयसे भाउए से णं = सहोदर छोटा भाई, वह, उम्मुक्कबालभावे जाव = बाल्यकाल बीतने पर यावत्, जोव्वणगमणुप्पत्ते अरहओ = युवावस्था प्राप्त करने पर, अरिट्ठणेमिस्स अंतियं = भगवान श्री नेमिनाथ के पास, मुण्डे जाव पव्वइस्सइ = मुंडित होकर दीक्षा ग्रहण करेगा । कण्हं वासुदेवं दोच्चंपि = कृष्ण वासुदेव को दुबारा, तच्चंपि एवं वयइ = तिबारा भी इस प्रकार कहता है । वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए = कहकर जिस दिशा से वह प्रकट, तामेव दिसं पडिगए = हुआ था उसी दिशा को चला गया।