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[अंतगडदसासूत्र वन्दाम: नमस्याम: वन्दित्वा, नमस्यित्वा इमम् एतद् रूपम् अभिग्रहम् अभिगृह्णीम: इच्छामः खलु भदन्त ! युष्माभिः अभ्यनुज्ञाता: सन्तः यावत् यथासुखम् । हे देवानुप्रिये! ततः खलु वयम् अर्हता अरिष्टनेमिना अभ्यनुज्ञाता: सन्त: यावज्जीवं षष्ठं षष्ठेन यावत् विहरामः । तद् वयम् अद्य षष्ठक्षपणपारणके प्रथमायां पौरुष्यां यावत् अटन्तः तव गृहं (गेहं) अनुप्रविष्टाः। तत् न खलु देवानुप्रिये ! ते चैव खलु वयम् । वयं खलु अन्ये । देवकी देवीं एवं वदति, उदित्वा यस्याः दिश:
प्रादुर्भूता: तस्यामेव दिशायां प्रतिगताः। अन्वयार्थ-तएणं ते अणगारा = इसके बाद उन दोनों मुनियों ने, देवई देवीं एवं वयासी- = देवकी देवी को इस प्रकार कहा, नो खलु देवाणुप्पिये! = हे देवानुप्रिये! ऐसा नहीं है कि, कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे = कृष्ण वासुदेव की इस, बारवईए नयरीए जाव = द्वारिका नगरी में जो यावत्, देवलोगभूयाए = देवलोक के समान है, समणा णिग्गंथा उच्चणीय- = श्रमण निर्ग्रन्थ उच्च-नीच आदि, जाव अडमाणा = कुलों में यावत् भ्रमण करते हुए, भत्तपाणं नो लब्भंति = आहार पानी नहीं प्राप्त करते हैं, नो चेव णं ताई ताई कुलाई = और न ही उन-उन कुलों में, दोच्चंपि तच्चंपि भत्तपाणाए अणुप्पविसंति = दूसरी बार तीसरी बार आहार, पानी के लिए मुनि लोग प्रवेश करते हैं । एवं खलु देवाणुप्पिए! = हे देवानुप्रिये ! बात इस प्रकार है कि-, अम्हे भद्दिलपुरे नयरे नागस्स = हम भद्दिलपुर नगर में नाग, गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए = गाथापति के पुत्र उनकी भार्या सुलसा के, अत्तया छ भायरो = अंगजात छ: भाई, सहोयरा सरिसया जाव = एक ही उदर से उत्पन्न हुए समान आकृति वाले यावत्, नलकुब्बरसमाणा = नलकूबर के समान हैं। अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = (हमने) अर्हत अरिष्टनेमि भगवान से, अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म = धर्म सुनकर मन में धारण करके, संसार भउव्विग्गा = संसार के भय से उद्विग्न, भीया जम्ममरणाओ = जन्म व मरण के भय से भीत, मुंडा जाव पव्वइया = मुण्डित होकर आखिर प्रव्रज्या, (दीक्षा), ग्रहण कर ली। तए णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वइया तं चेव दिवसं = तदनन्तर हमने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन, अरहं अरिट्ठणेमिं वंदामो नमसामो = अरिहन्त अरिष्टनेमि की वन्दना की उन्हें नमस्कार किया । वंदित्ता, नमंसित्ता = वन्दना नमस्कार करके, इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हामो = इस प्रकार के अभिग्रह को धारण किया है। इच्छामो णं भंते ! = हे भगवन् ! निश्चय से हम चाहते हैं, तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा = आपसे आज्ञा दिये गये होते हुए, जाव अहासुहं = (बेले-बेले की तपस्या करना) (प्रभु ने कहा) तथास्तु-जैसा सुख हो। देवाणुप्पिया! तए णं = हे देवानुप्रिये! तदनन्तर, अम्हे अरहया अरिट्ठणेमिणा = हम भगवान
अरिष्टनेमि से, अब्भणुण्णाया समाणा = आज्ञा दिये गये होकर, जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं = जीवनभर के लिए निरन्तर बेले-बेले की तपस्या करते हुए, जाव विहरामो = विचरण कर रहे हैं। तं अम्हे अज्ज