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तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] सिरिवच्छंकियवच्छा = श्रीवत्स से अंकित वक्ष वाले थे। कुसुमकुंडल-भद्दलया, नलकुब्बरसमाणा = कुसुम तुल्य कोमल, कुंडल सम धुंघराले बाल वाले नलकूवर के समान थे। तएणं ते छ अणगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं = इसके बाद वे छ अणगार जिस दिन अगार से अणगार धर्म में दीक्षित, पव्वइया, तं चेव दिवसं = होकर प्रव्रजित हुए, उसी दिन, अरहं अरिट्ठणेमिं वंदंति, नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- = अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दन नमन करते हैं । वन्दन नमस्कार कर वे इस प्रकार बोले-, इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं = “हे भदन्त! हम चाहते हैं आपकी, अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए = आज्ञा पाकर जीवन भर के लिए, छटुं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं = बेले-बेले का तप करते हए एवं उससे, अप्पाणं भावेमाणा विहरित्तए = अपनी आत्मा को भावित करते हुए विहरना।” अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेह =“हे देवानुप्रिय ! जैसा सुख हो वैसा करो, धर्म कार्य में प्रमाद मत करो।” तएणं ते छ अणगारा अरहया अरिट्ठणेमिणा = तब वे छ ही मुनि अर्हन्त अरिष्टनेमि की, अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए = आज्ञा पाकर जीवन पर्यन्त, छटुं छट्टेणं जाव विहरंति = बेले-बेले का तप करते हुए विचरने लगे, तए णं ते छ अणगारा अण्णया कयाई = तब उन छ अणगारों ने अन्यदा किसी दिन, छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए = बेले के तप के पारणों में प्रथम, पोरिसीए सज्झायं करेंति = प्रहर में स्वाध्याय की। जहा गोयमसामी = गौतम कुमार की तरह, जाव इच्छामोणं भंते ! = यावत बोले-“हे भगवन ! हम चाहते हैं, छट्रक्खमणस्स पारणए तब्भेहिं = बेले के तप के पारणों में आपकी, अब्भणुण्णाया समाणा तिहिं = आज्ञा पाकर तीन (दो-दो के तीन), संघाडएहिं बारवईए नयरीए = संघाड़ों से द्वारिका नगरी में, जाव अडित्तए = यावत् भ्रमण करना।” अहा सुहं देवाणुप्पिया! = 'तथास्तु देवानुप्रियों!', तएणं ते छ अणगारा = इसके बाद वे 6 अणगार, अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा = अर्हन्त अरिष्टनेमि से आज्ञा प्राप्त कर, अरहं अरिट्ठणेमि = उन अर्हन्त अरिष्टनेमि भगवान को, वंदंति, नमसंति, वंदित्ता = वन्दन करते हैं नमस्कार करते हैं। वन्दन, नमंसित्ता अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = नमस्कार करके अर्हन्त अरिष्टनेमि के, अंतियाओ सहस्संबवणाओ = पास से सहस्राम्र वन नामक (उस), उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति = उद्यान से वे प्रस्थान करते हैं। पडिणिक्खमित्ता तिहिं संघाडएहिं = प्रस्थान करके दो-दो मुनि तीन संघाड़ों में, अतुरियं जाव अडंति = त्वरा रहित यावत् भ्रमण करने लगे । तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए = इसके बाद एक संघाड़ा द्वारिका, नयरीए उच्चणीय मज्झिमाई = नगरी में ऊँच नीच मध्यम, कुलाई घरसमुदाणस्स = कुलों के घरों में सामूहिक, भिक्खायरियाए अडमाणे = भिक्षाचरी हेतु भ्रमण करते-करते, वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए = वसुदेवजी की राणी देवकी देवी के, गिहं अणुप्पविढे = प्रासाद में प्रविष्ट हुआ। तएणं सा देवई देवी = इसके बाद वह देवकी देवी, ते अणगारे एज्जमाणे = उन दोनों मुनियों को आते हुए, पासित्ता हट्ठ तुट्ठ चित्तमाणंदिया = देख हृष्टतुष्टचित्त व आनन्दित हुई, पीईमाणा परमसोमणस्सिया = (उसके) मन