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द्वितीय वर्ग - प्रथम अध्ययन ]
19} आर्य सुधर्मा श्रीमुख से कहते हैं- “इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने दूसरे वर्ग के आठ अध्ययन फरमाये हैं, जैसे कि-प्रथम अक्षोभ कुमार, दूसरे सागर, तीसरे समुद्र, चौथे हिमवान और पांचवे अचल कुमार, छठे धरण, सातवें पूरण और आठवें अभिचन्द्र हैं।" मूल- तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए वण्ही पिया धारिणी माया।
जहा पढमो वग्गो, तहा सव्वे अट्ठ अज्झयणा । गुणरयणं तवोकम्म, सोलस वासाइं परियाओ सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धा। एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स दोच्चस्स
वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते। संस्कृत छाया- तस्मिन् काले तस्मिन् समये द्वारावत्यां नगर्यां वृष्णिः पिता धारिणी माता । यथा प्रथम:
वर्ग: तथा सर्वाणि अष्ट अध्ययनानि । गुणरत्नं तपःकर्म षोडश वर्षाणि (दीक्षा) पर्याय: शत्रुजये (पर्वते) मासिक्या संलेखनया यावत् सिद्धाः। एवं खलु जम्बू !
श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य द्वितीयस्य वर्गस्य अयमर्थ: प्रज्ञप्तः। अन्वयार्थ-तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल उस समय, बारवईए नयरीए वण्ही पिया = द्वारिका नगरी में वष्णि (राजा) पिता थे.धारिणी माया = और धारिणी रानी माता थी। जहा पढमो वग्गो = जैसे प्रथम वर्ग, तहा सव्वे अट्ठ अज्झयणा = वैसे सभी आठ अध्ययन । गुणरयणं तवोकम्मं = (सभी ने) गुणरत्न तप किया, सोलस वासाइं परियाओ = सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली, सेत्तुंजे मासियाए संलेहणाए = शत्रुजय पर मासिकी संलेखना की, जाव सिद्धा = यावत् सिद्ध हुए । एवं खलु जंबू ! = इस प्रकार निश्चय करके हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष-प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स = (इस) आठवें अंग शास्त्र के, दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते = दूसरे वर्ग का यह भाव कथन किया है।
भावार्थ-उस काल उस समय में द्वारिका नगरी में इन आठों कुमारों के वृष्णि राजा पिता और धारिणी माता थी। जिस प्रकार प्रथम वर्ग कहा, उसी प्रकार ये सभी आठों अध्ययन समझने चाहिये।
इन सभी ने गुणरत्न संवत्सर तप किया। सोलह वर्ष का चारित्र पालन कर, शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना से यावत् सिद्ध हुए।
इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें अंग शास्त्र अंतगडदशा के दूसरे वर्ग का यह भाव श्रीमुख से कहा है।
।। इइ बिइओ वग्गो-द्वितीय वर्ग समाप्त।।