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सूत्र 1
मूल
तइओ वग्गो-तृतीय वर्ग
पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन
[ अंतगडदसासूत्र
जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स दोच्चस्स वग्गस्स अयमद्वे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स समणेणं जाव संपत्ते के अट्ठे पण्णत्ते ?
संस्कृत छाया - यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य द्वितीयस्य वर्गस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः, तृतीयस्य खलु भदन्त ! वर्गस्य श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कः अर्थः प्रज्ञप्तः ?
संपत्तेणं
अन्वयार्थ - जइ णं भंते ! = (आर्य जम्बू) “यदि निश्चय करके हे पूज्य !, समणेणं जाव = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स दोच्चस्स वग्गस्स = आठवें अंग शास्त्र के दूसरे वर्ग का, अयमट्टे पण्णत्ते = यह भाव कथित किया है (तो), तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स = हे पूज्य (अब) तीसरे वर्ग का, समणेणं जाव संपतेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, के अट्ठे पण्णत्ते ? = क्या भाव कहा है ?”
भावार्थ-आर्य जम्बू - “हे पूज्य ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृद्दशा के दूसरे वर्ग का यह भाव कहा है । अब हे पूज्य ! तीसरे वर्ग का श्रमण भगवान महावीर यावत् मुक्ति - - प्राप्त प्रभु ने क्या भाव कहा है ?
मूल
एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहाअणीयसेणे, अणंतसेणे, अजियसेणे, अणिहयरिऊ, देवसेणे, सत्तुसेणे, सारणे, गए, सुमुहे, दुम्मुहे, कूवए, दारुए, अणादिट्ठी । जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स