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[अंतगडदसासूत्र
बिइओ वग्गो-द्वितीय वर्ग
सूत्र 1
मूल
जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कई अज्झयणा पण्णत्ता ? एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता तं जहा-गाहाअक्खोभे सागरे खलु समुद्द हिमवंत अयलणामे य।
धरणे य पूरणे वि य अभिचंदे चेव अट्ठमए ।। संस्कृत छाया- यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन प्रथमस्य वर्गस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः,
द्वितीयस्य खलु भदन्त ! वर्गस्य अन्तकृद्दशानाम् श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कति अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि ? एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन यावत् (मुक्तिं) संप्राप्तेन अष्टौ अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तानि यथा-गाथा-अक्षोभ: सागरः खलु समुद्रः हिमवान्
अचलनामा च ! धरणश्च पूरणोऽपि च अभिचन्द्रश्चैव अष्टमकः ।। अन्वायार्थ-जइ णं भंते ! = “यदि निश्चय करके हे पूज्य !, समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने पहले, वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते = वर्ग का यह भाव कहा है, दोच्चस्स णं भंते ! = तो भदन्त ! दूसरे, वग्गस्स अंतगडदसाणं = अन्तकृद्दशांग के वर्ग के, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, कई अज्झयणा पण्णत्ता? = कितने अध्ययन प्रतिपादित किये हैं ? एवं खलु जम्बू ! = निश्चय करके हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता = आठ अध्ययन कहे हैं । तं जहा-गाहा = वे इस प्रकार हैं-गाथा, अक्खोभे सागरे खलु = 1. अक्षोभ 2. सागर, समुद्द हिमवंत अयलणामे य = 3. समुद्र 4. हिमवन्त 5. अचल, धरणे य पूरणे वि य = 6. धरण 7. पूरण, अभिचंदे चेव अट्ठमए = 8. अभिचन्द्र।"
भावार्थ-जम्बू स्वामी बोले-“हे पूज्य! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने प्रथम वर्ग का यह वर्णन किया है। अब हे भगवन् ! अंतकृद्दशा के दूसरे वर्ग में श्रमण भगवान महावीर ने कितने अध्ययन फरमाये हैं।"