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[अंतगडदसासूत्र __ आर्य सुधर्मा-“इस प्रकार हे जम्बू! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की एक नगरी थी। वह बारह योजन लम्बी, नौ योजन चौड़ी, स्वयं कुबेर के कौशल (बुद्धि) से निर्मित, स्वर्ण के कोट से घिरी हुई
और अनेक प्रकार की पाँच वर्ण की (इन्द्र, नील, वैडूर्य, पद्मरागादि) मणियों से जटित, कंगूरों वाली शोभनीय एवं अत्यन्त रमणीय थी। नगरियों में वह वैश्रमण की नगरी अलकापुरी के समान, प्रमुदित एवं क्रीडायुक्त होने से प्रत्यक्ष देव लोक के समान एवं मन को प्रफुल्लित करने वाली थी। उसकी दीवारों पर (राजहंस, चक्रवाक, सारस, हाथी, घोड़े, मयूर, मृग, मगर, आदि पशु-पक्षियों एवं अन्य अनेक प्राणियों) के चित्र बने हुए थे। विशिष्ट असाधारण सौन्दर्य से युक्त होने से वह अभिरूपा थी और जिसके स्फटिक निर्मित दीवारों पर प्रतिबिम्ब सर्वदा प्रतिफलित होते रहने से, जो प्रतिरूपा भी थी।।4।।
सूत्र 5
मूल- तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तर-पुरत्थिमे दिसिभाए एत्थ णं
रेवयए नाम पव्वए होत्था, वण्णओ, तत्थ णं रेवयए पव्वए नंदणवणे नाम उज्जाणे होत्था वण्णओ। सुरप्पिए नामं जक्खाययणे होत्था पोराणे से णं एगेणं वणखंडेण परिक्खित्ते असोगवरपायवे तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया परिवसइ महया हिमवंतराय वण्णओ। से णं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं पज्जुण्ण-पामोक्खाणं अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं संबपामोक्खाणं सट्ठीए दुईत साहस्सीणं महासेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवग्गसाहस्सीणं वीरसेण-पामोक्खाणं एगवीसाए वीरसाहस्सीणं उग्गसेण-पामोक्खाणं सोलसण्हं रायसाहस्सीणं रूप्पिणी-पामोक्खाणं सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं अणंगसेणा-पामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं ईसर जाव सत्थवाहाणं बारवईए नयरीए अद्धभरहस्स य
सम्मत्तस्स य आहेवच्चं जाव विहरइ ।। 5 ।। संस्कृत छाया- तस्याः द्वारावत्याः नगर्याः बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे अत्र खलु रैवतको नाम
पर्वतोऽभूत् वर्णकः । तत्र खलु रैवतके पर्वते नन्दनवनं नाम उद्यानमासीत् । वर्णकः, सुरप्रिय: नाम यक्षायतनमभवत् । पुरातनं तत् खलु एकेन वनखंडेन परिक्षिप्तम्