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प्रथम वर्ग - प्रथम अध्ययन ]
7} सुरम्मा। अलकापुरी-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देव
लोगभूया पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।। 4।। संस्कृत छाया- यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् सिद्धगतिं संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य
अन्तकृद्दशानां प्रथमस्य वर्गस्य दश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-गौतम: यावत् विष्णुः प्रथमस्य हे भदन्त ! अध्ययनस्य अन्तकृद्दशानां श्रमणेन यावत् सिद्धगतिं संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्त: ? एवं खलु जम्बू! तस्मिन् काले तस्मिन् समये द्वारवती नाम नगरी अभवत् । द्वादश योजन-आयामा नव योजन-विस्तीर्णा धनपतिमति-निर्मिता चामीकरप्राकारा नाना मणि पंचवर्ण-कपिशीर्षकैः परिमण्डिता सुरम्या । अलकापुरी-संकाशा प्रमुदिता
प्रक्रीडिता प्रत्यक्ष देवलोकभूता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा प्रतिरूपा ।।4।। अन्वयार्थ-जइणं भंते ! समणेणं = यदि निश्चय ही हे भदन्त ! श्रमण, जाव संपत्तेणं = यावत् मोक्षप्राप्त (प्रभु) ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अन्तकृद्दशा के, पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता = प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं.तं जहा = जो इस प्रकार हैं.गोयम जाव विण्हू = “गौतम से लेकर विष्णुकुमार तक" (तो), पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं = हे भदन्त ! अन्तकृद्दशांग के प्रथम अध्ययन का, समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते? = श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त (प्रभु) ने क्या भाव प्रतिपादित किया है ?
___ एवं खलु जंबू ! = इस प्रकार निश्चय करके हे जम्बू !, तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था । = उस काल उस समय द्वारिका नाम की नगरी थी। दुवालस जोयणायामा = (वह) 12 योजन लम्बी (और), नव जोयण वित्थिण्णा = नौ योजन विस्तीर्ण (यानी चौड़ी), धणवइमइ निम्मिया = (स्वयं) धन कुबेर की बुद्धि से निर्मित, चामीगरपागारा = स्वर्ण प्राकार से युक्त, नाणा मणि पंचवण्ण कविसीसगपरिमण्डिया = अनेकों पाँच वर्ण की मणियों से मंडित कंगूरों वाली, सुरम्मा = सुरम्य, अलकापुरी-संकासा = कुबेर की नगरी के सदृश, पमुइय-पक्कीलिया = प्रमुदित और प्रक्रीड़ित, पच्चक्खं देवलोगभूया = साक्षात् देवलोक तुल्य, पासाइया दरिसणिज्जा = प्रमोदजनक, दर्शनीय, अभिरूवा पडिरूवा = अभिरूप, प्रतिरूप थी।।4।।
भावार्थ-आर्य जम्बू-“हे पूज्य! यदि श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग शास्त्र अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं, जैसे गौतम आदि, तो हे भगवन् ! अन्तकृद्दशांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने क्या भाव कहा है ? कृपा करके बतलाएँ।"