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[अंतगडदसासूत्र समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, कइ अज्झयणा पण्णत्ता ? = कितने अध्ययन कहे हैं ?।।3।।
एवं खलु जंबू ! = इस प्रकार हे जम्बू!, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अन्तकृद्दशा के, पढमस्स वग्गस्स = प्रथम वर्ग के, दस अज्झयणा पण्णत्ता । = दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। तं जहा = वे इस प्रकार हैं
गोयम = गौतम, समुद्द सागर = समुद्र-सागर, गंभीरे चेव = गंभीर, होइ = होता, थिमिए = स्तिमित, य = और, अयले = अचल, कंपिल्ले = काम्पिल्य, खलु = निश्चय, अक्खोभ = अक्षोभ, पसेणई = प्रसेनजित, विण्हू = विष्णु।।3।।
भावार्थ-सुधर्मा स्वामी श्रीमुख से कहते हैं-“इस प्रकार निश्चित रूप से हे जम्बू! श्रमण भगवान महावीर, जो मोक्ष पधारे हैं, उन प्रभु ने अन्तकृद्दशा नामक आठवें अङ्ग शास्त्र के आठ वर्ग कहे हैं।"
जम्बू-“हे भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मुक्ति -प्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा के आठ वर्ग फरमाये हैं, तो हे पूज्य! अन्तकृद्दशांग के प्रथम वर्ग में श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने कितने अध्ययन कहे हैं?"
सुधर्मा स्वामी-“इस प्रकार निश्चित रूप से हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त महावीर प्रभु ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा सूत्र के प्रथम वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं-1. गौतम, 2. समुद्र, 3. सागर, 4. गम्भीर 5. स्तिमित, 6. अचल, 7. काम्पिल्य, 8. अक्षोभ 9. प्रसेनजित, 10. विष्णु ।
पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन
सूत्र 4
मूल
जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तं जहा-गोयम जाव विण्ह । पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था। दुवालस जोयणायामा नव जोयण वित्थिण्णा धणवइमइ-निम्मिया चामीगरपागारा नाणा मणि पंचवण्ण कविसीसग-परिमण्डिया