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[अंतगडदसासूत्र
।। सब जन लो हर्ष मनाई ।। (तर्ज-::-यह शिविर ज्ञान का धाम)
सब पर्यों का ताज, पुण्य दिन आज, संवत्सरी आई।
सब जन लो हर्ष मनाई ।।टेर ।।
चौरासी लाख जीव योनि से, जो वैर किया मन, वच, तन से। भूलो वह और लो, मैत्री भाव बसाई ।। सब जन.... ||1 ।। जो जान बूझ कर पाप किया, या अनजाने अतिचार हआ। लो दण्ड और दो, मिच्छामि दुक्कडं भाई ।। सब जन.... ||2 ।। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य श्री, पाठक मुनिवर महासतियाँ जी। श्रावक श्राविका इन सब से लेवो खमाई ।। सब जन.... ।।3।।
जो खमता और खमाता है, वह प्राणी आराधक बनता है। आराधक की होती है गति सुखदाई ।। सब जन.... ।।4 ।। यह पर्व नित्य नहीं आता है, पाले वह मुक्ति पाता है । केवल कहते ‘पारस' अपना नरमाई ।। सब जन.... ।। 5 ।।
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