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भजन
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यह जीव रुले चहुँ गति में, यह पाप करण की रति में। निज गुण सम्पद को खोया रे ।। ये पर्व0 ।। 2 ।।
तुम छोड़ प्रमाद मनाओ, नित धर्म ध्यान रम जाओ। लो भव-भव दु:ख मिटाया रे ।। ये पर्व0 ।। 3 ।।
तप-जप से कर्म खपाओ, दे दान द्रव्य फल पाओ। ममता त्यागी सुख पाओ रे ।। ये पर्व0 ।। 4 ।।
मूरख नर जन्म गमावे, निन्दा विकथा मन भावे । इनसे ही गोता खावे रे ।। ये पर्व0 ।।5।।
जो दान शील आराधे, तप द्वादश भेदे साधे । शुद्ध मन जीवन सरसाया रे ।। ये पर्व0 ।। 6 ।। बेला तेला और अठायाँ, संवर पौषध करो भाया । शुद्ध पालो शील सवाया रे ।। ये पर्व0 ।।7 ।।
तुम विषय-कषाय घटाओ, मन मलिन भाव मत लाओ। निन्दा विकथा तज माया रे ।। ये पर्व० ।।8 ।।
के ई आलस में दिन खोवे, शतरंज ताश या सोवे । पिक्चर में समय गमावे रे ।। ये पर्व ।।9 ।।
संयम की शिक्षा लेना, जीवों की रक्षा करना। जो जैन धर्म तुम पाया रे ।। ये पर्व० ।।10 ।।
जन-जन का मन हरषाया, बालकगण भी हुलसाया । आत्म-शुद्धि हित आया रे ।। ये पर्व0 ।।11 ।।
समता से मन को जोड़ो, ममता का बन्धन तोड़ो। है सार ज्ञान का पाया रे ।। ये पर्व0 ।। 12 ।। सुरपति भी स्वर्ग से आवे, हर्षित हो जिन गुण गावे । जन-जन को अभय दिलाया रे ।। ये पर्व0 ।।13 ।। 'गजमुनि' निजमन समझावे, यह सोई शक्ति जगावे । अनुभव रसपान कराया रे ।। ये पर्व0 ।।14 ।।