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[अंतगडदसासूत्र निश्चय पहले और व्यवहार बाद में है। श्री गजसुकुमाल अणगार को आज्ञा देने वाले त्रिकाल-ज्ञानी, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थङ्कर प्रभु थे। इसलिये उनके लिये सूत्र का विधान लागू नहीं होता।
प्रश्न 15. द्वारिका नगरी का निर्माण कुबेर की मति से हुआ था, तो क्या वह नगरी वैक्रिय पुद्गलों से बनाई गयी थी?
उत्तर-शास्त्रकारों ने वर्णन किया है कि द्वारिका की रचना कुबेरदेव की बुद्धि से हुई थी। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह नगरी वैक्रिय पुद्गलों से बनाई गयी थी। क्योंकि वैक्रिय का तात्पर्य है नाना प्रकार के अनेक रूप धारण करना, जो नगरी के वर्णन में नहीं मिलता। नगरी के निर्माण से नष्ट होने तक उसमें विशेष परिवर्तन का उल्लेख नहीं है। वैक्रिय पुद्गलों की स्थिति अल्प होती है, वे जलाये भी नहीं जा सकते।
ठाणांग सूत्र के चौथे ठाणे के उद्देशक 3 में बताया गया है कि चारों शरीर जीव सहगत होते हैं, अर्थात् ये जीव से भिन्न नहीं पाये जाते । केवल औदारिक ही ऐसा शरीर है जो बिना जीव के मिलता और दिखाई देता है। संसार में जितने भी जीव या अजीव के पुद्गल दिखाई देते हैं वे सब औदारिक शरीर या उसके अवशेष हैं। अत: स्पष्ट हुआ कि द्वारिका देव द्वारा औदारिक पुद्गलों से बनाई गई थी। औदारिक पुद्गल होने से ही वह देव द्वारा जलाकर नष्ट कर दी गई थी।
प्रश्न 16. क्या छप्पन करोड़ यादव द्वारिका नगरी में ही बसते थे?
उत्तर-आगमकारों ने द्वारिका का वर्णन करते हुए अन्तगड़ सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में लिखा हैप्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ कुमार, उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा थे। कृष्णवासुदेव सम्पूर्ण आधे भारत में राज्य करते थे, अत: छप्पन करोड़ यादव पूरे आधे भारत में होना सम्भव है।
प्रश्न 17. साधुओं को राजपिण्ड लेना निषिद्ध है, ऐसी दशा में मुनिराजों ने देवकी महारानी के यहाँ से सिंह केशरी मोदक कैसे ग्रहण किये ?
उत्तर-राज पिण्ड न लेने की विधि प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर के साधुओं के लिये है, मध्य के 22 तीर्थङ्करों के साधुओं के लिये नहीं (भगवती शतक 26 उद्देशक 6-7)। देवकी महारानी के यहाँ सिंह केशरी मोदक लाने वाले मुनिराज 22वें तीर्थङ्कर के समय के साधु थे। अत: उनके द्वारा राजपिण्ड ग्रहण करना कल्प की ऐच्छिकता है।
प्रश्न 18. श्री कृष्ण जैसे विनीत पुत्र अपनी माता को चरण-वन्दन के लिए छह-छह माह से जाते थे, इसका क्या कारण है ?
उत्तर-श्री कृष्ण के पिता वसुदेव का उनके पूर्व भव में किये हुए निदान के कारण 72,000 (बहत्तर हजार) कन्याओं ने वरण किया था। अतः श्रीकृष्ण के कुल बहत्तर हजार माताएँ थी। वे प्रतिदिन 400 मातओं के चरण वन्दन के लिए जाते थे। नित्य 400 माताओं को वन्दना करने पर 72,000 माताओं की छ: मास में वन्दना पूरी होती थी। अत: देवकी महारानी के चरण वन्दना के लिए भी श्रीकृष्ण को छ: मास लग जाते थे।
प्रश्न 19. प्रतिदिन 400 माताओं की वन्दना कैसे सम्भव है ? उसमें कितना समय लगता होगा?
उत्तर-वे माताएँ एक प्रासाद में रहती होंगी और उन्हें कृष्ण सामूहिक सिर झुकाकर वन्दन कर लेते होंगे। इस प्रकार यह कार्य अल्प समय में ही हो जाता होगा। जैसे श्री सुधर्मा स्वामी आदि के साथ विचरने वाले 500 मुनियों की वन्दना अल्प समय में सम्भव है।