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प्रश्नोत्तर]
247} प्रश्न 13. भिक्षु प्रतिमा आराधना के क्या-क्या नियम होते हैं ?
उत्तर-प्रतिमाओं के पालन का विस्तृत वर्णन दशाश्रुत स्कन्ध की सातवीं दशा में है। पालन के मुख्य नियम इस प्रकार हैं
पहली प्रतिमा का धारक साधु एक माह तक एक दत्ति अन्न की तथा एक दत्ति पानी की प्रतिदिन लेता है। (दत्ति = एक साथ, धार खण्डित हुए बिना, जितना पात्र में पड़े) यह दत्ति एक व्यक्ति के विभाग में आये हुए भोजन से ली जाती है। गर्भवती या छोटे बच्चे की माँ के लिये बनाया गया भोजन वह नहीं लेते। दुग्धपान छुड़वा कर भिक्षा देने वाली स्त्री से अथवा आसन्न-प्रसवा स्त्री से उसको उठाकर भोजन नहीं लेते। जिसके दोनों पैर देहली के भीतर हों या बाहर हों, उससे भी आहार नहीं लेते। प्रतिमाधारी साधु छः प्रकार से भिक्षा ग्रहण करे-(अ) पेटी के आकार-सन्दूक के चारों कोनों के आकार से, (ब) अर्धपेटी-दो कोनों के आकार से, (स) गो मूत्र के आकार-एक घर इधर से दूसरा घर सामने के आगे से, (द) पतंगे के आकार से-एक घर फरस कर बीच-बीच में घर छोड़कर भिक्षा लेना, (य) शंखावर्त्त-गोल आकार से (र) गतप्रत्यागत-जाते हुए करे तो आते हुए नहीं तथा आते हुए करे तो जाते हुए नहीं। भिक्षाचरी के लिए दिन के आदि, मध्य और अन्त इन तीन भागों में से किसी एक भाग में जाता है। शरीर की शुश्रूषा का त्याग करे, शरीर की ममता से रहित हो तथा देव, मनुष्य, तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग समभाव से सहन करे। परिचित स्थान पर एक रात्रि तथा अपरिचित स्थान पर दो रात्रि ठहर सकते हैं। प्रतिमाधारी चार कारण से बोलते हैं-1. याचना करते, 2. मार्ग पूछते, 3. आज्ञा प्राप्त करते, 4. प्रश्न का उत्तर देते समय। तीन स्थान में निवास करे-1. बाग-बगीचा, 2. श्मशानछत्री, 3. वृक्ष के नीचे । तीन प्रकार की शय्या ले सकते हैं-1. पृथ्वी. 2. शिलापट्ट. 3. काष्ठ का पट्ट। प्रतिमाधारी साधक पाँव से काँटा, आँख से धूल-तृण अपने हाथ से नहीं निकाले। जहाँ सूर्यास्त हो जाय वहाँ से एक कदम भी आगे विहार नहीं करे, सूर्योदय के पश्चात् विहार करे। हाथी, घोड़ा, सिंह आदि हिंसक जानवर आने पर भयभीत होकर मार्ग नहीं छोड़े। किन्तु उनसे कोई जानवर डरता
हो तो रास्ता छोड़ देवे । मकान में आग लग जाये और स्त्री आदि आ जावे तो भय से बाहर नहीं निकले। 13. अशुचि निवारण एवं भोजन के पश्चात् हाथ-मुँह आदि धोने के अतिरिक्त, हाथ, पाँव, दाँत, आँख, मुख आदि
नहीं धोवे।
प्रश्न 14. सूत्र में बारह भिक्षु प्रतिमाओं का क्रमश: नियमानुसार पालन करने का विधान है तो श्री गजसुकुमाल मुनि को दीक्षा लेने के पहले दिन ही बारहवीं प्रतिमा अंगीकार करने की आज्ञा कैसे दी गई?
उत्तर-सूत्रों के विधान के अनुसार प्रतिमाओं को वहन करने की आज्ञा साधक के ज्ञान, मानसिक व शारीरिक बल को देखकर अनुक्रम से पालन करने को दी जानी चाहिये । जैसा कि भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशक 1 में स्कन्ध अणगार के वर्णन में है। यह व्यवहार मार्ग है, और इसका अनुसरण होना ही चाहिये । परन्तु यह परिपाटी आगम व्यवहारी एवं केवलज्ञानियों के लिये लागू नहीं होती है। वे जैसा द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव देखते हैं, वैसी आज्ञा दे सकते हैं। उनके लिये