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प्रश्नोत्तर]
249} प्रश्न 20. श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में यह ज्ञात हो जाने के पश्चात् भी-कि आगामी चौबीसी में वे बारहवें तीर्थङ्कर बनेंगे, (किन्तु) फिर भी किसी साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका ने उन्हें वन्दना की हो, ऐसा उल्लेख क्यों नहीं?
उत्तर-जैन धर्म में निक्षेप मुख्य हैं। भाव निक्षेप जिसमें मिले, उसी नाम, स्थापना एवं द्रव्य निक्षेप वालों को वन्दनीय माना जाता है। श्रीकृष्ण के तीर्थङ्कर नाम कर्म का बन्ध अवश्य हो चुका था, किन्तु उस समय तीर्थङ्कर का भाव निक्षेप नहीं होने से किसी ने वन्दन-नमस्कार नहीं किया।
प्रश्न 21. देवकी का भविष्य कहने वाले अतिमुक्त कुमार श्रमण कौन से थे? क्या ये अन्तगड़ सूत्र में वर्णित अतिमुक्तकुमार ही थे? यदि नहीं तो वे किस तीर्थङ्कर के समय में हुए ? बतलाइये।
उत्तर-देवकी को पोलासपुर नगरी में भविष्य कहने वाले अतिमुक्त कुमार, श्रमण भगवान महावीर के शिष्य व अन्तगड़ सूत्र में वर्णित अतिमुक्त मुनि (एवन्ता मुनि) से भिन्न हैं । ये इक्कीसवें तीर्थङ्कर भगवान नेमिनाथ के शासनवर्ती हैं। अतिमुक्त मुनि कंसराजा के छोटे भाई थे। जब उग्रसेन को कारावास में डालकर कंस स्वयं मथुरा का राजा बन गया तो अतिमुक्त कुमार को वैराग्य हो गया, उसने दीक्षा ग्रहण कर ली, और उग्र तप करने लगे। दीक्षित होकर उन्होंने मासखमण की तपस्या की। एक बार मथुरा में विचरण करते हुए और भिक्षार्थ घूमते हुए उन्होंने कंस के घर में प्रवेश किया। कंस की पत्नी जीवयशा उस समय अपनी ननद देवकी का सिर गूंथ रही थी। अतिमुक्त श्रमण के आने पर जीवयशा उनके जाने के मार्ग पर खड़ी रही, और देवर मुनि से हँसी करती हुई बोली-महाराज! तुम्हारा भाई राज्य करता है और तुम झोली लिये घरघर माँगते फिरते हो, इससे हमको बड़ी लज्जा होती है। छोड़ो इस वेश को और राज्य में आ जाओ। इस प्रकार अधिक समय तक हँसी करने पर मुनि से नहीं सहा गया। उन्होंने रुष्ट हो जीवयशा से कहा-क्यों इतना गर्व करती हो? जिसके तुम बाल गूंथ रही हो उसी बालिका का सातवाँ पुत्र तुम्हें विधवा बनायेगा? वह तुम्हारे पति और पिता दोनों का संहारक होगा। (अभी तुम्हारे पुण्य थोड़े शेष हैं। अत: गर्व मत करो।)
देवकी से कहा कि तुम समान वय, रंग, जाति, कुल वाले छ: पुत्रों को जन्म दोगी। तुम्हारे समान भरत क्षेत्र में अन्य कोई दूसरी माता नहीं होगी। ऐसा कहकर मुनि चले गये। छ: मुनियों को देखकर देवकी को अतिमुक्त मुनि की बात याद आ गई। इस प्रकार ये अतिमुक्त भगवान महावीर के शासनवर्ती एवन्ता मुनि से भिन्न हैं।
प्रश्न 22. समाज में कई संघाड़े एक घर में एक ही बार गोचरी करते हैं, उस दिन दूसरीतीसरी बार नहीं जाते हैं। इसके लिये अन्तगड़ सूत्र में देवकी के यहाँ छह मुनिओं के तीन संघाड़े के जाने के प्रसंग को आधार बताया जाता है, कि यदि आज की तरह एक ही घर में दूसरी-तीसरी बार जाने की रीति होती तो देवकी यह नहीं कहती कि श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी में क्या श्रमण निन्थों को भक्तपान प्राप्त नहीं हो पाता, जिससे कि उन्हीं कुलों में दूसरी-तीसरी बार प्रवेश करते हैं?
उत्तर-1. शास्त्र के ये वचन चरितानुवाद के हैं, इसमें भगवान अरिष्टनेमि के मुनियों की चर्या का परिचय प्राप्त होता है एवं उस समय के मुनि कब और किस प्रकार अलग-अलग संघाड़े से भिक्षा करते थे, यह बताया गया है। इसमें श्रमण निर्ग्रन्थ को एक घर में एक ही बार गोचरी जाना, दूसरी-तीसरी बार नहीं, ऐसा विधि-निषेध नहीं है।
2. दशवैकालिक सूत्र और आचारांग में भिक्षा-विधि का उल्लेख है, उसमें एक घर में एक बार ही भिक्षा जाना,