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षष्ठ वर्ग - पन्द्रहवाँ अध्ययन ]
159 } संपरिवुडे अभिरममाणे = साथ उनसे घिरा हुआ प्रेम पूर्वक, अभिरममाणे विहरइ = खेलते हुए विचरण करने लगा। तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे = तभी भगवान गौतम पोलासपुर, नयरे उच्चणीय जाव = नगर में छोटे-बड़े कुलों में, अडमाणे इंदट्ठाणस्स = यावत् भ्रमण करते हुए क्रीड़ास्थल, अदूरसामंतेणं वीइवयइ = के पास से जा रहे थे। तए णं से अइमुत्ते कुमारे = इसी समय अतिमुक्त कुमार ने, भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं = भगवान गौतम को पास से ही, वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता = जाते हुए देखा, देखकर, जेणेव भगवं गोयमे तेणेव = जहाँ भगवान गौतम थे वहाँ, उवागए भगवं गोयम = आये और भगवान गौतम से, एवं वयासी-के णं भंते ! तुब्भे = इस प्रकार बोले-हे पूज्य ! आप कौन हैं, किं वा अडह? = और क्यों घूम रहे हैं ?।।2।।
भावार्थ-इधर अतिमुक्त कुमार स्नान करके यावत्, शरीर की विभूषा करके बहुत से लड़केलड़कियों, बालक-बालिकाओं और कुमार कुमारिकाओं के साथ अपने घर से निकले और निकल कर जहाँ इन्द्र-स्थान यानी क्रीड़ास्थल है, वहाँ आये । वहाँ उन बालक-बालिकाओं के साथ वे प्रेम पूर्वक खेलेने लगे।
उस समय भगवान गौतम पोलासपुर नगर में छोटे-बड़े कुलों में यावत् भ्रमण करते हुए उस क्रीड़ा स्थल के पास से जा रहे थे, तब अतिमुक्त कुमार ने उनको पास से जाते हुए देखकर उनके पास आये और उनसे इस प्रकार बोले-“हे पूज्य ! आप कौन हैं और इस तरह क्यों घूम रहे हैं ?" ।
सूत्र 3
मूल- तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी-"अम्हेणं देवाणुप्पिया!
समणा णिग्गंथा इरियासमिया जाव बंभयारी उच्चणीय जाव अडामो।" तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी-“एह णं भंते ! तुब्भे, जण्णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमि।" त्ति कट्ट भगवं गोयमं अंगुलीए गिण्हइ, गिण्हित्ता, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा सिरीदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता, हट्टतुट्ठ जाव आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता, जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो-आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता, वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं
पडिलाभेइ जाव पडिविसज्जेइ ।।3।। संस्कृत छाया- ततः खलु भगवान् गौतम: अतिमुक्तं कुमारमेवमवदत्-“वयं खलु हे देवानुप्रिय!
श्रमणा: निर्ग्रन्था: ईर्यासमिता: यावत् ब्रह्मचारिण: उच्चनीच यावदटामः।” ततः