________________
{ 160
[अंतगडदसासूत्र खलु अतिमुक्तः कुमारः भगवन्तं गौतममेवमवदत्-“इह खलु (आगच्छत) भदन्त ! यूयं येनाहं युष्मभ्यं भिक्षांदापयामि।” इति कृत्वा भगवन्तं गौतमं अंगुल्या गृह्णाति, गृहीत्वा यत्रैव स्वकं गृहम् तत्रैव उपागतः । ततः खलु सा श्रीदेवी भगवन्तं गौतमं आगच्छंतं पश्यति, दृष्ट्वा, हृष्टतुष्टा यावत् आसनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय, यत्रैव भगवान् गौतमः तत्रैव उपागता। भगवन्तं गौतमं त्रि:कृत्वा आदक्षिणंप्रदक्षिणां करोति, कृत्वा, वंदते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा विपुलेन
अशनपानखाद्यस्वाद्येन प्रतिलम्भयति यावत् प्रतिविसर्जयति ।।3।। अन्वयार्थ-तएणं भगवं गोयमे अइमुत्तं = तब भगवान गौतम ने अतिमुक्त, कुमारं एवं वयासी= कुमार को इस प्रकार कहा-, अम्हे णं देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय ! हम, समणा णिग्गंथा इरियासमिया = श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, ईर्यासमिति आदि सहित, जाव बंभयारी उच्चणीय जाव = यावत् ब्रह्मचारी हैं, छोटे-बड़े कुलों, अडामो = में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं। तए णं अइमुत्ते कुमारे = तब अतिमुक्त कुमार, भगवं गोयमं एवं वयासी- = भगवान गौतम से इस प्रकार कहने लगे-, एह णं भंते ! तुब्भे, जण्णं अहं = हे भगवन् ! आप इधर पधारें जिससे, तुब्भं भिक्खं दवावेमि = मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ। त्ति कट्ट भगवं गोयमं अंगुलीए = ऐसा कहकर भगवान गौतम की अँगुली, गिण्हइ, गिण्हित्ता, जेणेव सए गिहे = पकड़ी, पकड़कर जहाँ अपना घर था, तेणेव उवागए = वहाँ पर ही ले आये। तए णं सा सिरीदेवी भगवं गोयम = फिर उस श्री देवी ने भगवान गौतम को, एज्जमाणं पासइ, पासित्ता, हट्टतुट्ठ = आते हुए देखा, देख कर हृष्टतुष्ट, जाव आसणाओ अब्भुढेइ, = बनी यावत् अपने आसन से उठी, अब्भुट्टित्ता, जेणेव भगवं गोयमे = उठकर जहाँ भगवान गौतम थे, तेणेव उवागया = वहाँ आई। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो- = भगवान गौतम को तीन बार, आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता, वंदइ, = आदक्षिणा प्रदक्षिणा करती है, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता = करके वन्दन-नमस्कार करती है, करके, विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं = बहुत से अशन पान खाद्य स्वाद्य से, पडिलाभेइ जाव पडिविसज्जेइ = प्रतिलाभ दिया यावत् विसर्जित किया ।।3।।
भावार्थ-तब भगवान गौतम ने अतिमुक्त कुमार को उत्तर देते हुए इस तरह कहा- “हे देवानुप्रिय! हम श्रमण-निर्ग्रन्थ, ईर्यासमिति के धारक गुप्त ब्रह्मचारी हैं और छोटे बड़े कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं।" यह सुनकर अतिमुक्तकुमार भगवान गौतम से इस प्रकार बोले- "हे भगवन् ! आप आओ ! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ।"
ऐसा कहकर अतिमुक्तकुमार ने भगवान गौतम की अंगुली पकड़ी और उनको जहाँ अपना घर था वहाँ ले आये। श्रीदेवी महारानी भगवान गौतम को आते देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई यावत् आसन से उठकर