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[अंतगडदसासूत्र
दसममज्झयणं-दशम अध्ययन
मूल- एवं सुदंसणे विगाहावई, नवरं वाणियगामे नयरे, दूइपलासए चेइए,
पंचवासा परियाओ, विपुले सिद्धे ।।10।। संस्कृत छाया- एवं सुदर्शन: अपि गाथापतिः, विशेष:-वाणिज्यग्रामं नगरं, द्युतिपलाशकं चैत्यम्,
पंचवर्षाणि पर्याय:, विपुले सिद्धः ।10। अन्वयार्थ-एवं सुदंसणे विगाहावई, = इसी प्रकार सुदर्शन गाथापति, नवरं वाणियगामे नयरे, = वाणिज्य ग्रामवासी, दूइपलासए चेइए पंचवासा परियाओ = द्युतिपलाश उद्यान, पाँच वर्ष दीक्षा पाल कर, विपुले सिद्ध = विपुलगिरि पर सिद्ध हुए ।।10।।
भावार्थ-दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें । विशेष यह था कि वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर द्युतिपलाश नाम का उद्यान था। वहाँ दीक्षित हुए। वे पाँच वर्ष चारित्र पालकर विपुलगिरि से सिद्ध हुए।
।। इइ दसममज्झयणं-दसवाँ अध्ययन समाप्त ।।
एगारसममज्झयणं-ग्यारहवाँ अध्ययन
मूल- एवं पुण्णभद्दे वि गाहावई, वाणियगामे नयरे, पंचवासा परियाओ,
विपुले सिद्धे ।।11।। संस्कृत छाया- एवं पूर्णभद्रोऽपि गाथापतिः वाणिज्यग्राम नगरं पंचवर्षाणि पर्याय:, विपुले
सिद्धः ।।11।। अन्वयार्थ-एवं पुण्णभद्दे वि गाहावई, = इसी प्रकार पूर्णभद्र गाथापति, वाणियगामे नयरे, पंचवासा = वाणिज्य-ग्राम नगर वासी, पाँच वर्ष चारित्र, परियाओ, विपुले सिद्ध = पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हए ।।11।।
भावार्थ-पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन भी ऐसे ही समझें । विशेष यह था कि वे वाणिज्यग्राम नगर के रहने वाले थे। पाँच वर्ष का चारित्र पालन कर वे भी विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए।
।। इइ एगारसममज्झयणं-ग्यारहवाँ अध्ययन समाप्त ।।