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[ अंतगडदसासूत्र
भावार्थ - इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें । विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के वे निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षा काल रहा। यावत् वे भी विपुल गिरि पर सिद्ध हुए ।
।। इइ पचममज्झयणं-पंचम अध्ययन समाप्त ॥
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मूल
छट्टमज्झयणं- षष्ठम अध्ययन
एवं धितिहरे वि गाहावई, काकंदी नयरी सोलसवासा परियाओ जाव विपुले सिद्धे ॥16 ॥
संस्कृत छाया - एवं धृतिधरोऽपि गाथापतिः, काकंदी नगरी, षोडशवर्षाणि पर्याय: यावत् विपुले सिद्धः ।। 6 ।।
अन्वयार्थ - एवं धितिहरे विगाहावई, = इसी प्रकार धृतिधर गाथापति, काकंदी नयरी सोलसवासा कांकदी के निवासी सोलह वर्ष, परियाओ जाव विपुले सिद्धे = दीक्षा पालकर यावत् विपुल पर्वत पर सिद्ध हो गये ।16 ।।
भावार्थ - ऐसे ही धृतिधर गाथापति का भी वर्णन समझें। वे काकंदी के निवासी थे सोलह वर्ष तक मुनि चारित्र पालकर वह भी विपुलिगिरि पर सिद्ध हुए।
।। इइ छट्ठमज्झयणं-षष्ठम अध्ययन समाप्त ।।
मूल
सत्तममज्झयणं-सप्तम अध्ययन
एवं केलासे वि गाहावई, नवरं सागेए नयरे, वारस वासाइं परियाओ, विपुले सिद्धे || 7 ||
संस्कृत छाया - एवं केलासोऽपि गाथापतिः, नवीनं साकेतं नगरं, द्वादश वर्षाणि पर्याय:, विपुले सिद्धः ।। 7 ।।
अन्वयार्थ-एवं केलासे विगाहावई, = इसी प्रकार केलास गाथापति, नवरं सागेए नयरे, वारस वासाइं परियाओ = साकेत नगरवासी, 12 वर्ष दीक्षा पर्याय का, विपुले सिद्धे = पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए ।। 7 ।।
भावार्थ- ऐसे ही कैलाश गाथापति भी थे । विशेष यह था कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली और विपुलगिरि पर्वत पर से सिद्ध हुए ।
।। इइ सत्तममज्झयणं-सप्तम अध्ययन समाप्त ।।