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षष्ठ वर्ग - पंचम अध्ययन ]
151} संस्कृत छाया- उत्क्षेपक: चतुर्थस्य अध्ययनस्य एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये
राजगृहं नगरं गुणशिलकं चैत्यम् । तत्र खलु श्रेणिक: राजा। काश्यपः नाम गाथापतिः परिवसति, यथा मंकाई षोडश वर्षाणि पर्याय:, (यावत्) विपुले
सिद्धः।।4।। अन्वयार्थ-उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स = चौथे अध्ययन का उत्क्षेपक, एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं = तब सुधर्मा स्वामी ने कहा-हे जम्बू ! उस काल, तेणं समएणं रायगिहे नयरे = उस समय में राजगृह नगर था, गुणसिलए चेइए = वहाँ गुणशिलक उद्यान था। तत्थणं सेणिए राया = वहाँ श्रेणिक राजा के राज्य में, कासवे नामंगाहावई परिवसइ, = काश्यप नाम का गाथापति भी रहता था, जहा मंकाई = उसने मंकाई की तरह, सोलसवासा परियाओ = सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय का पालन किया, विपुले सिद्ध = और विपुल पर्वत पर सिद्ध हो गये।
भावार्थ-जम्बू स्वामी-“हे भगवन् ! छठे वर्ग के तीसरे अध्ययन में प्रभु ने जो भाव कहे वे सुने । अब चौथे अध्ययन में क्या भाव कहा है वह कृपया कहिये।"
श्री सुधर्मा स्वामी-“हे जम्बू ! उस काल उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक उद्यान था । वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। वहाँ काश्यप नाम का एक गाथा पति रहता था। उसने मंकाई की तरह सोलह वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुल गिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गये।
।। इइ चउत्थमज्झयणं-चतुर्थ अध्ययन समाप्त ।।
पंचममज्झयणं-पंचम अध्ययन
मूल
एवं खेमए वि गाहावई, नवरं काकंदी नयरी सोलसवासा परियाओ
विपुले पव्वए सिद्धे ।।5।। संस्कृत छाया- एवं क्षेमक: अपि गाथापतिः, (नवीन) विशेष: काकंदी नगरी षोडशवर्षाणि पर्याय:
विपुले पर्वते सिद्धः ।। 5 ।। अन्वयार्थ-एवं खेमए विगाहावई = इसी प्रकार क्षेमक गाथापति भी, विशेष, नवरं काकंदी नयरी = बात यह है कि ये कांकदी नगरी के थे, सोलसवासा परियाओ = सोलह वर्ष दीक्षा पर्याय का पालन कर, विपुले पव्वए सिद्धे = वे विपुल पर्वत पर सिद्ध हुए। 5 ।