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पंचम वर्ग प्रथम अध्ययन ]
संस्कृत छाया
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वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेइ, झोसित्ता सद्विभत्ताइं अणसणाइं छेदेइ, छेदित्ता जस्साए कीरई णग्गभावे - जाव तमद्वं आराहेइ चरिमुस्सासेहिं सिद्धा।।12।। ततः सा पद्मावती आर्या यक्षिण्याः आर्याया: अंतिके सामायिकादीनि एकादशांगानि अधीते, बहुभिः चतुर्थषष्ठाष्टमदशमद्वादशभिः मासार्द्धमासक्षपणैः विविधैः तप:कर्मभिः आत्मानं भावयन्ती विहरति । ततः सा पद्मावती आर्या बहुप्रतिपूर्णानि विंशति वर्षाणि श्रामण्य-पर्यायं पालयित्वा मासिक्या संलेखनया आत्मानं जोषयति जोषित्वा षष्टि-भक्तानि - अनशनानि छिनत्ति, छित्त्वा यस्यार्थाय क्रियते नग्नभावः यावत् तमर्थम् आराधयति चरमोच्छ्वासैः सिद्धा ।।12।।
अन्वायार्थ-तए णं सा पउमावई अज्जा = तदनन्तर उस पद्मावती आर्या ने, जक्खिणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं = यक्षिणी आर्या के पास सामायिक आदि, एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, = ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, बहूहिं चउत्थछट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं = बहुत से उपवास-बेले-तेलेचोले-पचोले, मासद्धमासखमणेहिं = मास और अर्धमास आदि, विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं = विविध तपस्या से आत्मा को, भावेमाणा विहरड़ = भावित करती हुई विचरने लगी। तए णं सा पउमावई अज्जा = इसके बाद वह पद्मावती आर्या, बहुपडिपुण्णाई वीसं वासाई = पूरे बीस वर्ष, सामण्णपरियागं पाउणित्ता = श्रमणी चारित्र धर्म का पालन कर; मासियाए संलेहणाए अप्पाणं = एक मास की संलेखणा से आत्मा को, झोसेइ, झोसित्ता सट्टिभत्ताइं अणसणाई छेदेइ, छेदित्ता = युक्त कर साठ भक्त अनशन पूर्ण कर, जस्साए कीरड़ णग्गभावे - = जिस कार्य के लिए नग्नभाव अपरिग्रह रूप संयम स्वीकार किया, जाव तमट्टं आराहेइ = उसी अर्थ का आराधन कर, चरिमुस्सासेहिं सिद्धा = अन्तिम श्वास से सिद्धबुद्ध - मुक्त हो गई ।।12।।
भावार्थ-तत् पश्चात् उस पद्मावती आर्या ने अपनी यक्षिणी गुरुणी के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, साथ ही साथ वह उपवास - बेले-तेले-चौले - पचोले, पन्द्रह - पन्द्रह दिन और महीने-महीने तक की विविध प्रकार की तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी।
इस तरह पद्मावती आर्या ने पूरे बीस वर्ष तक चारित्र धर्म का पालन किया । अन्त में एक मास की संलेखना की और साठ भक्त अनशन पूर्ण करके जिस कार्य (मोक्ष प्राप्ति) के लिए संयम स्वीकार किया था, उसकी आराधना करके अन्तिम श्वास के बाद सिद्ध-बुद्ध और सब दुःखों से मुक्त होकर सिद्ध पद को प्राप्त कर लिया ।।12।।
।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।।