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[अंतगडदसासूत्र
2-8 अज्झयणाणि-2-8 अध्ययन
सूत्र 1 मूल- उक्खेवओ य अज्झयणस्स । तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी,
रेवयए पव्वए उज्जाणे नंदणवणे। तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे राया होत्था तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी, वण्णओ, अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे । कण्हे णिग्गए, गोरी जहा पउमावई तहा णिग्गया, धम्मकहा, परिसा पडिगया, कण्हे वि पडिगए। तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा णिक्खंता जाव सिद्धा । एवं गंधारी, लक्खणा, सुसीमा, जम्बवई, सच्चभामा, रुप्पिणी, अट्ठवि पउमावई सरिसयाओ
अट्ठ अज्झयणा||1|| संस्कृत छाया- उत्क्षेपकश्च अध्ययनस्य । तस्मिन् काले तस्मिन् समये द्वारावती नगरी, रैवतक:
पर्वत: उद्यानं नन्दनवनम् । तत्र खलु द्वारावत्या: नगर्याः कृष्ण: वासुदेव: राजा आसीत् तस्य खलु कृष्णस्य वासुदेवस्स गौरी देवी, वा, अर्हन् अरिष्टनेमी समवसतः। कृष्ण: निर्गतः, गौरी यथा पद्मावती तथा निर्गता, धर्मकथा, परिषद प्रतिगता, कृष्णोऽपि प्रतिगतः। ततः सा गौरी यथा पद्मावती तथा निष्क्रान्ता यावत् सिद्धा । एवं गांधारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा, रुक्मिणी,
अष्टावपि पद्मावतीसदृशा: अष्ट-अध्ययनानि (समाप्तानि)।।1।। अन्वायार्थ-उक्खेवओय अज्झयणस्स = श्री जम्ब-हे भगवन ! प्रथम अध्ययन के जो भाव कहे वे, मैंने सुने । अब द्वितीय, तृतीय आदि अध्ययनों में प्रभु ने क्या, भाव कहे हैं सो कृपाकर फरमाइये । तेणं कालेणं तेणं समएणं = श्री सुधर्मा- हे जम्बू ! उस काल उस समय में, बारवई नयरी, रेवयए पव्वए उज्जाणे नंदणवणे = द्वारिकानगरी के पास रैवतक पर्वत और नन्दन वन नामक उद्यान था। तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे राया होत्था = वहाँ द्वारिका नगरी के कृष्ण वासुदेव राजा थे। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी, वण्णओ, = उस कृष्ण वासुदेव की गौरी नामकी महारानी थी, वर्णनीय थी, अरहा अरिट्रणेमी समोसढे = किसी समय भगवान नेमिनाथ द्वारिका के नन्दन वन उद्यान में पधारे,