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सूत्र 11
मूल
संस्कृत छाया
[ अंतगडदसासूत्र
तए णं अरहा अरिट्ठणेमी पउमावई देविं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव जक्खिणीए अज्जाए सिस्सिणीं दलय । तए णं सा जक्खिणी अज्जा पउमावइं देविं सयं पव्वावेइ, जाव संजमियव्वं, तए णं सा पउमावई जाव संजमइ । तए णं सा पउमावई अज्जा जाया, ईरियासमिया जाव गुत्तबम्भयारिणी।।11।।
ततः अर्हन् अरिष्टनेमिः पद्मावतीं देवीं स्वयमेव प्रव्राजयति, स्वयमेव यक्षिण्यैः आर्यायै शिष्यां ददाति। ततः खलु सा यक्षिणी आर्या पद्मावतीं देवीं स्वयं प्रव्राजयति, यावत् संयन्तव्यं ततः सा पद्मावती यावत् संयच्छते । ततः सा पद्मावती आर्या जाता, ईर्यासमिता यावत् गुप्तब्रह्मचारिणी ।।11।।
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अन्वायार्थ-तए णं अरहा अरिट्ठणेमी = इसके बाद भगवान नेमिनाथ ने, पउमावई देविं सयमेव पव्वावेइ = पद्मावती देवी को स्वयमेव प्रव्रज्या दी, सयमेव जक्खिणीए अज्जाए = और स्वयमेव यक्षिणी आर्या को, सिस्सिणीं दलयइ । = शिष्या रूप में प्रदान किया। तए णं सा जक्खिणी अज्जा पउमावई : तब उस यक्षिणी आर्या ने पद्मावती, देविं सयं पव्वावेइ, = देवी को स्वयं दीक्षा दी और, जाव संजमियव्वं, = संयम में यत्न करने की शिक्षा दी, तए णं सा पउमावई जाव संजमइ । = तब वह पद्मावती संयम में यत्न करने लगी । तए णं सा पउमावई अज्जा जाया = तब वह पद्मावती आर्या बन गई, ईरियासमिया जाव गुत्तबम्भयारिणी = और ईर्या समिति आदि पाँचों समितियों से युक्त हो यावत् ब्रह्मचारिणी हो गई ।।11।।
भावार्थ-पद्मावती के ऐसा कहने पर भगवान नेमिनाथ ने स्वयमेव पद्मावती को प्रव्रजित एवं मुंड करके यक्षिणी आर्या को शिष्या रूप में सौंप दिया।
तब यक्षिणी आर्या ने पद्मावती देवी को प्रव्रजित किया, श्रमणी - धर्म की दीक्षा दी और संयम क्रिया में सावधानी पूर्वक यत्न करते रहने की हित शिक्षा देते हुए कहा- "हे पद्मावते ! तुम संयम में सदा सावधान रहना ।” पद्मावती भी यक्षिणी गुरुणी की हित शिक्षा मानते हुए सावधानीपूर्वक संयम-पथ पर चलने का यत्न करने लगी एवं ईर्या समिति आदि पाँचों समितियों से युक्त होकर यावत् ब्रह्मचारिणी आर्या बन गई ।।11।। सूत्र 12
मूल
तणं सा पउमावई अज्जा जक्खिणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूहिं चउत्थछट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरइ । तए णं सा पउमावई अज्जा बहुपडिपुण्णाई वीसं