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[अंतगडदसासूत्र मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, चउत्थस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते = चौथे वर्ग का यह भाव कहा है, तो, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स अंतगडदसाणं = हे भगवन् ! अन्तकृद्दशासूत्र के पंचमवर्ग का श्रमण, जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? = यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, समणेणं = क्या अर्थ कहा है ?
एवं खलु जम्बू ! = इस प्रकार हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने, पंचमस्स वग्गस्स दस = पंचम वर्ग के दस, अज्झयणा पण्णत्ता = अध्ययन कहे हैं, तं जहा- = वे इस प्रकार हैं-, पउमावई य गोरी = पद्मावती, गौरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य = गांधारी, लक्ष्मणा और सुसीमा, जंबवई सच्चभामा = जाम्बवती, सत्यभामा, रुप्पिणी मूलसिरी मूलदत्ता य = रुक्मिणी मूलश्री और मूलदत्ता । जइणं भंते ! समणेणं = यदि हे भगवन् ! श्रमण, जाव संपत्तेणं = यावत् मुक्ति को प्राप्त प्रभु ने, पंचमस्स वग्गस्स दस = पंचम वर्ग के दस, अज्झयणा पण्णत्ता = अध्ययन कहे हैं। पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स = तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् संप्राप्त प्रभु ने, के अढे पण्णत्ते ? = क्या अर्थ कहा है ?
भावार्थ-श्री जम्बू स्वामी-“हे भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग का यह भाव फरमाया है तो अन्तकृद्दशा के पंचम वर्ग का श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ कहा है?" सूत्र 2 मूल- एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था,
जहा पढमे, जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव विहरइ । तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नामं देवी होत्था, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे जाव विहरइ। कण्हे णिग्गए जाव पज्जुवासइ। तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठहिअआ जहा देवई जाव पज्जुवासइ। तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावईए देवीए जाव धम्मकहा, परिसा पडिगया। तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इमीसे णं भन्ते! बारवईए नयरीए दुवालस-जोयण आयामाए नवजोयण-वित्थिण्णाए जाव पच्चक्खं देवलोग भूयाए किंमूलए विणासे भविस्सइ? कण्हाए ! अरहा अरिठ्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु कण्हा ! इमीसे