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ज्ञानी पुरुष (भाग-1) बारह-चौदह आने ही थे। कैसे जाएँगे भादरण?' तब शायद पाँच या दस का नोट होगा, तो मैंने कहा, 'ले, यह नोट उसे देकर आ'।
तब फिर वहाँ जल्दी से शंकर भाई को दौड़ाया और फिर वहाँ पर उसे पैसे दिए, तो उसने कहा, 'चाचा गरीब इंसान हैं। गरीब इंसान के पैसे मुझे क्यो दे रहे हो?' तो उसने नहीं लिए। तब फिर हमारे रणछोड़ भाई ने एक दिन कहा, 'इस विठ्ठल भाई को देखो न...' मैंने कहा, 'ऐसा क्यों कर रहे हो? वह अच्छा भतीजा है। जो भतीजा देने पर भी नहीं लेता, ऐसा कोई इस दुनिया में ढूँढ लाओ'। हम उसे देने जाएँ तो वह कहता है, 'आप गरीब हो, मुझे आपका नहीं चाहिए'। तो ऐसा भतीजा कहाँ से लाएँगे हम? देने पर लोग ले लेते हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता : ले लेते हैं।
दादाश्री : जेब में नहीं हों फिर भी देने पर भी नहीं लेते। तो रणछोड़ भाई बहुत खुश हो गए। मुझसे कहा, 'मुझे यह कला अच्छी लगी। आपने अच्छी कला ढूँढ निकाली'। तब मैंने कहा, 'क्या हो सकता है। क्या इस तरह से साथ रहते ? अगर कोई कला नहीं ढूँढे तो फिर क्या करें?'
अहंकार भग्न लेकिन उसके गुण देखे अब हमारा वह भतीजा इतने भग्न अहंकार वाला है कि पूरी जिंदगी पागलों की तरह ही रहा है! अब कौन से जन्म में वह अहंकार भग्न हुआ होगा और कौन से जन्म में उसका वेदन करेगा, वह तो भगवान जाने। ऐसे तो बहुत तरह के अहंकार भग्न लोग देखे हैं मैंने। भग्न अहंकार, भग्न प्रेम ऐसे बहुत तरह के भग्न! अहंकार भग्न व्यक्ति का कैसा होता है, कि अगर उसके पास पचास ही रुपए हों और आप कहो कि 'क्या आपसे बात हो सकती है? मुझे अभी ज़रा पैसों की परेशानी है'। तो वह किसी से पच्चीस-पाचस रुपए उधार लेकर आपको दे देगा, 'लो बड़े भाई', ऐसा करके।
प्रश्नकर्ता : हाँ, दे देगा।